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________________ सम्यक्त्व की पूर्णता ये द्रव्यलिंगी मुनिराज वंदनीय एवं पूजनीय ही होते हैं। (देखो, मोक्षमार्गप्रकाशक अध्याय सातवाँ पृष्ठ २४५, २४७-२४८) उन मुनिराज को मिथ्यात्व गुणस्थान से सीधा सातवाँ अप्रमत्तविरत गुणस्थान भी प्राप्त होता है। इन्हें सम्यक्त्व की पूर्ण निर्मलता तथा अप्रमत्तविरत गुणस्थान योग्य चारित्र की प्राप्ति सातवें गुणस्थान में हो जाती है - ऐसा कथन शास्त्रानुसार है। ३०. प्रश्न - सम्यक्त्व के आठ मद आदि २५ दोष बताये हैं, आप बता रहे हो सम्यक्त्व हमेशा पूर्ण ही होता, अधूरा नहीं होता - हम इस प्रकरण में क्या समझें? उत्तर - सम्यक्त्व तो हमेशा पूर्ण ही होता है, वह कभी अपूर्ण नहीं होता। वास्तविक देखा जाय तो श्रद्धा गुण के परिणमन का स्वभाव ही ऐसा है कि श्रद्धा गुण या तो मिथ्यात्वरूप परिणमन करेगा अथवा सम्यक्त्वरूप परिणमेगा। श्रद्धा गुण का परिणमन इन दो (मिथ्यात्व वा सम्यक्त्व) पर्यायों को छोड़कर अन्य पर्यायरूप होता ही नहीं है। . वास्तविकता से विचार किया जाय तो मद आदि दोष चारित्र गुण के विभाव परिणामरूप हैं। यहाँ यह स्पष्ट है कि चारित्र के मद आदि दोषों को सम्यक्त्व के दोष कहना, यह व्यवहार कथन है। .. ___ अर्थात् चारित्र के विभाव पर्यायों का आरोप सम्यक्त्व पर किया गया है, अतः यह आरोपित कथन है। इसलिए ये २५ दोष सम्यक्त्व के कहना मात्र व्यवहारनय का कथन है, इस अपेक्षासे ही उन्हें मानना योग्य है। दूसरा यह भी जानना आवश्यक है कि व्यवहार सम्यक्त्व भी चारित्र गुण की विभाव पर्याय है; क्योंकि देव, शास्त्र, गुरु का श्रद्धान करना यह प्रशस्त रागरूप परिणाम है। रागरूप परिणाम चारित्रगुण की विभाव पर्याय है। निज शुद्धात्मा की प्रतीति करना, यह श्रद्धा गुण की सम्यक्त्वरूप शुद्ध पर्याय है अर्थात् स्वभावपर्याय है और निज शुद्धात्मा का श्रद्धान न
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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