SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सम्यक्त्व की पूर्णता (उत्पत्ति के साथ) सम्यक्त्व कहो अथवा सम्यग्दर्शन कहो एक ही है। यह श्रद्धा गुण की स्वभाव पर्याय है। जीव द्रव्य के अनंत गुणों में श्रद्धा गुण का स्वरूप एकदम भिन्न है। श्रद्धा गुण के सम्यक् परिणमन से अनंत संसार सांत होता है और मोक्षमार्ग प्रारंभ होता है, इतना भी कथन सम्यक्त्व की महत्ता के लिए कम नहीं है। . सम्यक्त्वरूप पर्याय ऐसी अलौकिक एवं अद्भुत है कि वह अनंत गुणों में सम्यक्पने में निमित्त होती है। इस विशेषता से भी आश्चर्यकारी यह स्वरूप है कि वह सम्यक्त्व किसी भी जीव को किसी भी गति में आधा-अधुरा होता ही नहीं। जब भी किसी संज्ञी पर्याप्तक जीव के सम्यक्त्व प्रगट होता है, तब वह पूर्णरूप से ही प्रगट होता है। आधाअधूरापन सम्यक्त्व पर्याय के साथ कभी हो ही नहीं सकता। १३. कोई यहाँ पूछ भी सकता है कि ऐसा क्यों है? उसके उत्तर में स्वभावगत विशेषता है - यही कहना संभव है, अन्य कोई उत्तर किसी के पास भी नहीं है। अब यहाँ श्रद्धा/सम्यक्त्वरूप पर्याय का वर्णन करते हैं। श्रद्धा गुण की दो पर्यायें होती हैं - १) स्वभावपर्याय २). विभावपर्याय। जीव के श्रद्धा गुण की स्वभावपर्याय को सम्यग्दर्शन और विभावपर्याय को मिथ्यादर्शन कहते हैं। स्वभावपर्याय जीव के लिए सुखदायक होती है और विभावपर्याय दुःखदायक होती है। १४. प्रश्न - उत्पन्नध्वंसी पर्याय तो एक समयवर्ती होती है, सादिसांत होती है, उसकी चर्चा करने में क्या लाभ है ?
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy