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________________ कर्त्ता - कर्म पर्याय जिस समय प्रगट हो गयी, वहीं पर्याय उस पर्याय का कर्त्ता है, यह माना गया है। इसे ही पर्यायगत योग्यता भी कहते हैं। इसी को वस्तु-स्वरूप के स्वतंत्रता की पराकाष्ठा भी कहना योग्य है । - विश्व में अनंतानंत द्रव्य हैं। उनमें प्रत्येक द्रव्य अपने-अपने स्वचतुष्टय से (द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव) भिन्न-भिन्न ही है, यह कथन वस्तुनिष्ठ है। एक द्रव्यगत अनंत गुण (संज्ञा, संख्या, लक्षण व प्रयोजन) की अपेक्षा परस्पर भिन्न (अन्य) ही हैं; भले उन सब गुणों का द्रव्य, क्षेत्र, काल एक हो, तथापि भाव की अपेक्षा प्रत्येक गुण भिन्न (अन्य ) ही है। 29 उसी तरह प्रत्येक समय में प्रगट होने वाली पर्याय भी अपने-अपने काल में अपनी-अपनी पर्यायगत योग्यता के कारण भिन्न (अन्य ) ही है अर्थात् पूर्व पर्याय में से उत्तर पर्याय नहीं आती और वर्तमानकालीन पर्याय में से भविष्यकालीन पर्याय उत्पन्न नहीं होती, यह वास्तविक वस्तु का स्वरूप है। यदि कोई द्रव्य एवं गुण को तो स्वतंत्र सत् माने, परन्तु प्रत्येक पर्याय को अपने समयगत / पर्यायगत काल का सत् न माने अर्थात् किसी द्रव्य की किसी भी पर्याय को परतंत्र माने, तो उसने द्रव्य एवं गुण को भी परतंत्र ही मान लिया है, ऐसा समझना अनिवार्य हो जाता है । स्वतंत्रता - वस्तु स्वातंत्र्य तो जिनधर्म का मूल सिद्धान्त है, प्राण है, सर्वस्व है। यदि किसी भी एक द्रव्य, एक गुण अथवा एक पर्याय को कोई जीव परतंत्र स्वीकार करेगा, तो वह व्यक्ति मोक्षमार्ग प्रगट करने में भी स्वाधीन / स्वतंत्र नहीं हो सकेगा। यदि मोक्षमार्ग प्रगट नहीं कर पायेगा, तो मोक्ष भी कैसे प्राप्त कर सकेगा? इसलिए द्रव्य एवं गुण के समान ही पर्याय को भी स्वतंत्र मानना आवश्यक है ।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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