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पर्याय का स्वरूप
प्रतीति, मान्यता, विश्वास, अभिप्राय इन शब्दों का उपयोग भी श्रद्धा के लिए किया जाता है।
ज्ञान - जानना, स्वसंवेदन करना, विशेष प्रतिभास होना, झलकाना, स्व-पर प्रकाशन इत्यादि कार्य ज्ञान करता है। ___ चारित्र - स्वरूप में रमना, जमना, अनुभवना, स्थिर होना, मग्न होना, लीन होना आदि कार्य, चारित्र गुण का है।
इसी को निम्नप्रकार भी समझ सकते हैं - श्रद्धा का कार्य (धर्म) (मैपना, मैं मानना) मानना है। ज्ञान का कार्य (धर्म/जानना है। चारित्र का कार्य (धर्म) लीनता, स्थिरता करना है।
लोक में कहावत है - सूझ, बूझ, रीझ से काम लेना चाहिये। सूझना = दिखाई पड़ना, बूझना = जानकारी हासिल करना, रीझना = तल्लीन हो जाना।
जैसे- कोई पथिक (राहगीर) किसी अन्य व्यक्ति से टकरा जाता है तो उसे कहा जाता है कि क्या सूझता नहीं है? रास्ता भूल गये हो तो बूझ क्यों नहीं लेते?
इसीप्रकार इस संसारी भ्रमित बुद्धिवाले जीव को सुखी होने का उपाय सूझता नहीं है और भेड़चाल से गतानुगतिक लोक की तरह इन्द्रिय विषयों के पीछे अंधा हो दौड़ रहा है, इधर-उधर टकराता फिरता है - लड़ना-झगड़ना चालू रखता है। कभी क्रोध, तो कभी मान, कभी मायाचारी और कभी लोभ भाव कर कर दुःखी होता रहता है। फिर भी विचार नहीं करता कि सच्चा, स्वाधीन निराकुल सुख कहाँ से व कैसे मिलेगा।
संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकजीव में विचार करने की शक्तितो है, निर्णय करसकने की प्रगट ज्ञान शक्ति है, यही एकमहान पावर (सामर्थ्य) इसके हाथ में है, जिसके सदुपयोगसे यह सच्चे सुख का मार्गपासकता है।