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________________ 207 सम्यक्चारित्र की परिभाषाएँ . • निचली भूमिकाओं में व्यवहार चारित्र की प्रधानता रहती है। ऊपर ऊपर की ध्यानस्थ भूमिकाओं में निश्चय चारित्र की। ( जैनेन्द्र सिद्धान्त कोश, भाग-२, पृष्ठ-२८३) सम्यक्चारित्र की महिमा १. जो ज्ञानी होते हुए अमूढदृष्टि होकर सम्यक्त्वाचरण चारित्र से शुद्ध होता है और जो संयमाचरण चारित्र से सम्यक् प्रकार शुद्ध हो तो शीघ्र ही निर्वाण को प्राप्त होता है। . (चारित्रपाहुड़, गाथा-९, पृष्ठ-७५) २. दर्शनाचार और चारित्राचार इन दोनों में सम्यक्त्वाचरण चारित्र पहले होता है। __ (चारित्रपाहुड़, गाथा-८) ३. जिन का सम्यक्त्व विशुद्ध होय ताहि यथार्थ ज्ञान करि आचरण करै, सो प्रथम सम्यक्त्वाचरण चारित्र है, सो मोक्षस्थान के अर्थ होय है। (चारित्रपाहुड़, गाथा-८) ४. ज्ञान और दर्शन के समायोग से चारित्र होता है। (बोधपाहुड़, गाथा-२०, पृष्ठ-११३) ५. भव्य जीवों को सम्यक्त्वरूपी रसायन द्वारा पहले मिथ्यामल का शोधन करना चाहिए, पुनः चारित्ररूप औषध का सेवन करना चाहिए। इसप्रकार करने से कर्मरूपी रोग का तत्काल ही नाश हो जाता है। (रयणसार, गाथा-७३, पृष्ठ-७१) ६. मोक्ष के इच्छुक को पहले जीवराजा को जानना चाहिए, फिर उसी प्रकार उसका श्रद्धान करना चाहिए, और तत्पश्चात् उसका आचरण करना चाहिए। (समयसार, गाथा-१८, पृष्ठ-४७) ७. अपने अतिरिक्त सर्व पदार्थ पर हैं, ऐसा जानकर प्रत्याख्यान करता है, अतः प्रत्याख्यान ज्ञान ही है। (समयसार, गाथा-३४, पृष्ठ-७०) ८. शुद्ध आत्मा ही चारित्र का आश्रय है, क्योंकि छह जीव निकाय
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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