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________________ प्रश्नोत्तर . 199 यदि आत्मा और आम्रवों का भेदज्ञान होने पर भी आस्रवों से निवृत्त न हो तो वह ज्ञान ही नहीं है। चारित्र से श्रुत प्रधान है, इसलिए उसकी अग्रय संज्ञा है। (धवला पुस्तक ७, खण्ड-२, पृष्ठ-८७) ६. प्रश्न - चारित्र से श्रुत की प्रधानता किस कारण से है? उत्तर – क्योंकि श्रुतज्ञान के बिना चारित्र की उत्पत्ति नहीं होती, इसलिए चारित्र की अपेक्षा श्रुत की प्रधानता है। __जो पहले जानता है वही त्याग करता है, अन्य तो कोई त्याग करनेवाला नहीं है; इसलिए प्रत्याख्यान ज्ञान ही हो। (धवला पुस्तक १३, खण्ड-५, पृष्ठ-२८८) ७. प्रश्न - मिथ्यादृष्टि जीवों के ज्ञान को अज्ञानपना कैसे कहा? उत्तर - क्योंकि, उनका ज्ञान, ज्ञान का कार्य नहीं करता है। ८. प्रश्न - ज्ञान का कार्य क्या है? उत्तर-जाने हुए पदार्थ का श्रद्धान करना ज्ञान का कार्य है। इसप्रकार का ज्ञान मिथ्यादृष्टि जीवों में पाया नहीं जाता है। इसलिए उनके ज्ञान को ही अज्ञान कहा है। अन्यथा जीव के अभाव का प्रसंग प्राप्त होगा। (धवला पुस्तक ५, खण्ड-१, पृष्ठ-२२४) ९. प्रश्न - दयाधर्म को जाननेवाले ज्ञानियों में वर्तमान मिथ्यादृष्टि जीव में तो श्रद्धान पाया जाता है ? उत्तर - नहीं, क्योंकि, दयाधर्म के ज्ञाताओं में भी, आप्त, आगम और पदार्थ के प्रति श्रद्धान से रहित जीव के यथार्थ श्रद्धान के होने का विरोध है। ज्ञान का कार्य नहीं करने पर ज्ञान में अज्ञान का व्यवहार लोक में अप्रसिद्ध भी नहीं है, क्योंकि पुत्र के कार्य को नहीं करनेवाले पुत्र में भी लोक के भीतर अपुत्र कहने का व्यवहार देखा जाता है। (धवला पुस्तक ५, खण्ड-१, पृष्ठ-२२४)
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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