SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 197
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 196 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्ज्ञान ३८. शुद्ध नय के आश्रित जो जीव का स्वरूप है, वह तो उपादेय है और शेष सब ज्ञेय है। इस प्रकार हेयोपादेय रूप से भावार्थ भी समझना चाहिए। (द्रव्यसंग्रह, गाथा-२, पृष्ठ-११) ३९. निश्चय से स्वकीय शुद्धात्म द्रव्य उपादेय है और शेष सब हेय है। इसप्रकार संक्षेप से हेयोपादेय के भेद से दो प्रकार व्यवहार ज्ञान है। उसके विकल्परूप व्यवहार ज्ञान के द्वारा निश्चयज्ञान साध्य है। सम्यक् और निर्विकल्प अपने स्वरूप का वेदन करना निश्चयज्ञान है। (द्रव्यसंग्रह, गाथा-४२, पृष्ठ-२१०) सम्यग्ज्ञान, भेद-प्रभेद • सामान्यरूप से ज्ञान एक है। • ज्ञान दो प्रकार का है - प्रत्यक्ष और परोक्ष। परोक्ष के दो भेद हैं - मतिज्ञान व श्रुतज्ञान। • प्रत्यक्ष के तीन भेद हैं - अवधिज्ञान, मनःपर्ययज्ञान और केवलज्ञान। • चैतन्य शक्ति के दो आकार हैं - ज्ञानाकार और ज्ञेयाकार। • द्रव्य, गुण, पर्याय रूप विषयभेद से ज्ञान तीन प्रकार का है। • नामादि निक्षेपों के भेद से ज्ञान चार प्रकार का है। । मति आदि की अपेक्षा ज्ञान पाँच प्रकार का है। ज्ञेयाकार परिणति के भेद से ज्ञान के संख्यात, असंख्यात व अनन्त विकल्प होते हैं। • ज्ञान, पापरूपी तिमिर नष्ट करने के लिए सूर्य के समान हैं। • ज्ञान, मोक्षरूपी लक्ष्मी के निवास करने के लिए कमल के समान हैं। • ज्ञान, कामरूपी सर्प को कीलने के लिए मन्त्र के समान है। • ज्ञान, मनरूपी हस्ती/हाथी को सिंह के समान है।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy