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________________ 192 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्ज्ञान स्वयमेव बन्धस्वरूप है। इसलिए आगम में ज्ञानस्वरूप होने का अर्थात् अनुभूति करने का ही विधान है। .. (समयसार, कलश-१०५, पृष्ठ-२५४) ११. तात्पर्य दो प्रकार का होता है - सूत्र तात्पर्य और शास्त्र तात्पर्य। उसमें सूत्र तात्पर्य प्रत्येक सूत्र में प्रतिपादित किया गया है और शास्त्र तात्पर्य अब प्रतिपादित किया जाता है। साक्षात मोक्ष के कारणभूत परमवीतरागपने में जिसका समस्त हृदय स्थित है, ऐसे इस (पंचास्तिकाय, षद्रव्य, सप्ततत्त्व व नवपदार्थ के प्रतिपादक) यथार्थ पारमेश्वर शास्त्र का, परमार्थ से वीतरागपना ही तात्पर्य है। ___(पंचास्तिकाय तत्त्वप्रदीपिका, गाथा-१७२) १२. ज्ञानसमय की प्रसिद्धि के लिए शब्दसमय के सम्बन्ध से अर्थसमय ____का कथन करना चाहते हैं। ___(पंचास्तिकाय तत्त्वप्रदीपिका, गाथा-३, पृष्ठ-७) १३. यदि कोई पुरुष ज्ञानात्मक आत्मा को तथा यथोचितरूपसे परकीय चेतनाचेतन द्रव्यों को निश्चय के अनुकूल भेदज्ञान का आश्रय लेकर जानता है तो वह मोह का क्षय कर देता है। और यह स्वपरभेदविज्ञान आगम से सिद्ध होता है। (प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति, गाथा-८९, पृष्ठ-१२६) १४. वास्तव में यही आत्मा और बन्ध के द्विधा करने का प्रयोजन है कि बन्ध के त्याग से शुद्धात्मा को ग्रहण करना है। . (समयसार आत्मख्याति, गाथा-२९५, पृष्ठ-४६७) १५. इसप्रकार देह और आत्मा के भेदज्ञान को जानकर मोह के उदय से उत्पन्न समस्त विकल्प जाल को त्याग कर निर्विकार चैतन्य चमत्कार मात्र निज परमात्म तत्व में भावना करनी चाहिए। ऐसा तात्पर्य है। (समयसार तात्पर्यवृत्ति, गाथा-२५, पृष्ठ-३८) १६. भेद विज्ञान हो जाने पर मोक्षार्थी जीव स्वद्रव्य में प्रवृत्ति और परद्रव्य से निवृत्ति करता है, ऐसा भावार्थ है। . (प्रवचनसार तात्पर्यवृत्ति, गाथा-१८२, पृष्ठ-२५९)
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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