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________________ 182 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन ११. फिर प्रश्न है कि कितने ही जीव अरहन्तादिक का श्रद्धान करते हैं, उनके गुण पहिचानते हैं और उनके तत्त्वश्रद्धानरूप सम्यक्त्व नहीं होता; इसलिये जिसके सच्चा अरहन्तादिक का श्रद्धान हो, उसके तत्त्वश्रद्धान होता ही होता है - ऐसा नियम सम्भव नहीं है? ___ समाधान – तत्त्वश्रद्धान बिना अरहन्तादिक के छियालीस आदि गुण जानता है, वह पर्यायाश्रित गुण जानता है; परन्तु भिन्न-भिन्न जीवपुद्गल में जिसप्रकार सम्भव हैं, उसप्रकार यथार्थ नहीं पहिचानता, इसलिये सच्चा श्रद्धान भी नहीं होता; क्योंकि जीव-अजीव जाति पहिचाने बिना अरहन्तादिक के आत्माश्रित गुणों को व शरीराश्रित गुणों को भिन्न-भिन्न नहीं जानता। यदि जाने तो अपने आत्मा को परद्रव्य से भिन्न कैसे न माने? इसलिये प्रवचनसार में ऐसा कहा है - जो जाणदि अरहंतं, दव्वत्तगुणत्तपजयत्तेहिं। सो जाणदि अप्पाणं, मोहो खलु जादि तस्स लयं॥ - इसका अर्थ यह है - जो अरहन्त को द्रव्यत्व, गुणत्व, पर्यायत्व से जानता है, वह आत्मा को जानता है; उसका मोह विलय को प्राप्त होता है। ___ इसलिये जिसके जीवादिक तत्त्वों का श्रद्धान नहीं है, उसके अरहन्तादिक का भी सच्चा श्रद्धान नहीं है। तथा मोक्षादिक तत्त्व के श्रद्धान बिना अरहन्तादिक का माहात्म्य यथार्थ नहीं जानता। लौकिक अतिशयादि से अरहन्त का, तपश्चरणादि से गुरु का और परजीवों की अहिंसादि से धर्म की महिमा जानता है, सो यह पराश्रितभाव हैं। ___ तथा आत्माश्रित भावों से अरहन्तादिक का स्वरूप तत्त्वश्रद्धान होने पर ही जाना जाता है; इसलिये जिसके सच्चा अरहन्तादिक का श्रद्धान हो, उसके तत्त्वश्रद्धान होता ही होता है - ऐसा नियम जानना। जयत्ताह।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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