________________
मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन
बढ़ाता है; रागादिक नहीं छोड़ता, तब उसका कार्य कैसे सिद्ध होगा? तथा नव तत्त्व संतति का छोड़ना कहा है; सो पूर्व में नव तत्त्व के विचार से सम्यग्दर्शन हुआ, पश्चात् निर्विकल्प दशा होने के अर्थ नव तत्त्वों के भी विकल्प छोड़ने की चाह की ।
तथा जिसके पहले ही नव तत्त्वों का विचार नहीं है, उसको वह विकल्प छोड़ने का क्या प्रयोजन है? अन्य अनेक विकल्प आपके पाये जाते हैं, उन्हीं का त्याग करो ।
इस प्रकार आपा-पर के श्रद्धान में व आत्मश्रद्धान में सात तत्त्वों के श्रद्धान की सापेक्षता पायी जाती है; इसलिये तत्त्वार्थ श्रद्धान सम्यक्त्व का लक्षण है।
९. फिर प्रश्न है कि कहीं शास्त्रों में अरहन्त देव, निर्ग्रन्थ गुरु, हिंसा रहित धर्म के श्रद्धान को सम्यक्त्व कहा है, सो किसप्रकार है ?
180
समाधान – अरहन्त देवादिक के श्रद्धान से कुदेवादिक का श्रद्धान दूर होने के कारण गृहीत मिथ्यात्व का अभाव होता है, उस अपेक्षा इसके सम्यक्त्व कहा है । सर्वथा सम्यक्त्व का लक्षण यह नहीं है; क्योंकि द्रव्यलिंगी मुनि आदि व्यवहार धर्म के धारक मिथ्यादृष्टियों के भी ऐसा श्रद्धान होता है।
अथवा जैसे अणुव्रत, महाव्रत होने पर तो देशचारित्र, सकलचारित्र हो या न हो; परन्तु अणुव्रत, महाव्रत हुए बिना देशचारित्र, सकलचारित्र कदाचित् नहीं होता; इसलिये इन व्रतों को अन्वयरूप कारण जानकर कारण में कार्य का उपचार करके इनको चारित्र कहा है ।
उसी प्रकार अरहन्त देवादिक का श्रद्धान होने पर तो सम्यक्त्व हो या न हो; परन्तु अरहन्तादिक का श्रद्धान हुए बिना तत्त्वार्थश्रद्धानरूप सम्यक्त्व कदाचित् नहीं होता; इसलिये अरहन्तादिक के श्रद्धान को अन्वयरूप कारण जानकर कारण में कार्य का उपचार करके इस श्रद्धान