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________________ द्रव्य का स्वरूप 15 है; उसे अवश्य देखें। विस्तारभय से यहाँ उसे देने में हम असमर्थ हैं। गुरुवर्य श्री गोपालदासजी बरैया ने जैन सिद्धान्त प्रवेशिका में सामान्यजन को बोधगम्य ऐसा द्रव्य का लक्षण इसप्रकार दिया है - गुणों के समूह को द्रव्य कहते हैं। यहाँ गुणों के समूह का तात्पर्य मात्र दो-पाँच गुण अथवा हजारलाख-करोड़-अरब आदि संख्यात गुण तो हैं ही नहीं, असंख्यात गुण भी नहीं हैं; अपितु अनन्त गुणों का समूह है। तात्पर्य यह है कि प्रत्येक द्रव्य में अनन्त गुण पाये जाते हैं। ___ इस परिभाषा में पर्यायों का समूह गौण है। तत्त्वार्थसूत्र में ‘गुणपर्ययवत् द्रव्यम्' ऐसा सूत्र आया है, अर्थात् गुण एवं पर्यायों के समूह को द्रव्य समझ लेना चाहिए। ३. प्रश्न - पुद्गलद्रव्य में तो स्पर्श, रस, गंध, वर्ण आदि थोड़े से ही गुण पाये जाते हैं और आप अनंतगुण बता रहे हैं, हम किसे यथार्थ स्वीकार करें ? उत्तर - भाई साहब ! आप तो मात्र कुछ विशेष गुणों का ही उल्लेख कर रहे हैं। जिनवाणी में भी पुद्गल का लक्षण बताते हुए सामान्यरूप से स्पर्शादि चार गुणों का ही संक्षेप में कथन किया है। वस्तुतः पुद्गल द्रव्य में स्पर्शादि विशेष गुण भी अनन्त हैं और अस्तित्वादि सामान्य गुण भी अनन्त ही हैं। धर्मादि द्रव्यों की चर्चा में तो मात्र गतिहेतुत्वादि एक-एक विशेष गुणों का ही उल्लेख मिलता है, लेकिन वहाँ भी अनन्त विशेष गुण व अनन्त सामान्य गुण समझना चाहिए अर्थात् अनन्त सामान्य गुण और अनन्त विशेष गुणों के समूह को ही द्रव्य कहते हैं - ऐसा ही प्रत्येक द्रव्य का वास्तविक स्वरूप समझना चाहिए।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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