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________________ सम्यग्ज्ञान १. प्रश्न - सम्यग्ज्ञान प्रकट करने के लिए क्या करना चाहिए? उत्तर - चैतन्य सामान्य द्रव्य पर दृष्टि करना चाहिए और उसके पहिले सात तत्त्वों का स्वरूप इसके ख्याल में आना चाहिए। विकल्प सहित सात तत्त्वों का निर्णय होना चाहिए। .. (आत्मधर्म : जुलाई १९७६, पृष्ठ-२१) २. प्रश्न - द्वादशांग का सार क्या है? उत्तर : अनन्त केवली, मुनिराज और सन्त ऐसा कहते हैं कि स्वद्रव्य का आश्रय करो और परद्रव्य का आश्रय छोड़ो। स्वभाव में रत हो और परभाव से विरक्त, यही बारह अंग का सार है। - (आत्मधर्म : जुलाई १९७८, पृष्ठ-२६) ३. प्रश्न - एक आत्मा के ही सन्मुख होना है तो इसके लिए इतने अधिक शास्त्रों की रचना आचार्यदेव ने क्यों की? ___ उत्तर - इस जीव की भूलें इतनी अधिक हैं कि उन्हें बतलाने के लिए इतने अधिक शास्त्रों की रचना हुई है, की नहीं गई है, पुद्गल से a (आत्मधर्म : जुलाई १९८१, पृष्ठ-२१) ४. प्रश्न - पर के लक्ष्य से आत्मा में नहीं जाते - यह तो ठीक है, तो क्या शास्त्र-बाँचन से भी आत्मा में नहीं जाते? उत्तर - हाँ, शास्त्र बाँचने के विकल्प से भी आत्मा में नहीं जाते। (आत्मधर्म : अगस्त १९७८, पृष्ठ-२५) ५. प्रश्न - तो क्या हमें शास्त्र नहीं बाँचना चाहिये? उत्तर-आत्मा के लक्ष्य से शास्त्राभ्यास करना- ऐसा श्री प्रवचनसार में कहा है। श्री समयसार की प्रथम गाथा में आचार्यदेव ने कहा है कि तू अपनी पर्याय में सिद्धों की स्थापना करके सुन। इसका अर्थ यह हुआ कि तू सिद्धस्वरूप है - ऐसी श्रद्धा-प्रतीति करके सुन। सिद्धस्वरूप में
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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