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________________ 130 मोक्षमार्ग की पूर्णता: सम्यग्दर्शन .. उत्तर - सम्यग्दर्शन का काम तो परिपूर्ण आत्मस्वभाव को ही मानना है ; रागादि के ग्रहण-त्याग करने का काम सम्यग्दर्शन का नहीं है, वह तो चारित्र का अधिकार है। ____सच्ची श्रद्धा का कार्य यह है कि उपादेय की उपादेयरूप से और हेय की हेयरूप से प्रतीति करे। उपादेय को अंगीकार करना और हेय को छोड़ने का काम चारित्र का है, श्रद्धा का नहीं। राजपाट में होने पर भी और राग विद्यमान होने पर भी भरत चक्रवर्ती, श्रेणिक राजा, रामचन्द्रजी तथा सीताजी आदि सम्यग्दृष्टि थे। सम्यग्दर्शन होने पर व्रतादि होना ही चाहिये और त्याग होना ही चाहिये - ऐसा कोई नियम नहीं है। हाँ ! इतना अवश्य है कि सम्यग्दर्शन होने पर विपरीत अभिप्राय का - मिथ्यामान्यता का त्याग अवश्य हो जाता है। (आत्मधर्म : जून १९८२, पृष्ठ-२४) ४९. प्रश्न - सम्यग्दृष्टि स्वर्ग से आता है, तब माता के पेट में ९ महिने में निर्विकल्प उपयोग आता होगा या नहीं ? उत्तर - यह बात ख्याल में है, लेकिन शास्त्राधार कोई मिलता नहीं। विचार तो अनेक आते हैं, लेकिन शास्त्राधार तो मिलना चाहिये न ? (आत्मधर्म : जुलाई १९७६, पृष्ठ-२२) ५०. प्रश्न - क्या मतिज्ञान और श्रुतज्ञान में सम्यग्दर्शन होता है ? उत्तर - मतिज्ञानपूर्वक सम्यग्दर्शन होता है तो भी मतिज्ञान के समय आनंद का वेदन नहीं है। श्रुतज्ञान में आनंद का वेदन होता है अर्थात् श्रुतज्ञान में सम्यग्दर्शन का आनंद आता है तो भी मतिज्ञानपूर्वक श्रुतज्ञान में सम्यग्दर्शन होता है - ऐसा कहा जाता है। (आत्मधर्म : सितम्बर १९७६, पृष्ठ-२५) ५१. प्रश्न - द्रव्य-गुण-पर्याय के भेद के विचार में भी मिथ्यात्व किस प्रकार है ?
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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