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श्रीकानजी स्वामी के उद्गार
सर्वज्ञ को स्वीकार करनेवाले जीव ने यह निर्णय किया है कि अल्पज्ञ जीव अधूरी अवस्था के काल में भी सर्वज्ञ परमात्मा जैसा पूर्ण सामर्थ्यवान है।
पूर्ण को स्वीकार करनेवाला प्रतिसमय पूर्ण होने की ताकत रखता है। . परोक्षज्ञान में वस्तु के वर्तमान, स्वतन्त्र, त्रिकाली, अखण्ड, परिपूर्णस्वरूप का निर्णय पूर्णता के लक्ष्य से ही होता है। शुद्धनय से ऐसा जानना निश्चयसम्यक्त्व है। (आत्मधर्म : नवम्बर १९७७, पृष्ठ-२४)
३१. प्रश्न - जिसप्रकार क्रियानय से साध्यसिद्धि है - ऐसा एक धर्म है और ज्ञाननय से साध्यसिद्धि है -ऐसा भी एक धर्म है; उसीप्रकार त्रिकाली द्रव्य के आश्रय से भी सम्यग्दर्शन हो और निर्मल पर्याय सहित
द्रव्य के आश्रय से भी सम्यग्दर्शन हो - ऐसा है क्या ? . उत्तर - नहीं, एक ही समय में जानने योग्य क्रियानय तथा ज्ञाननय इत्यादि अनन्तधर्म है; परन्तु सम्यग्दर्शन का विषय एक नय से त्रिकालीद्रव्य भी है और दूसरे नय से देखने पर पर्याययुक्त द्रव्य भी सम्यग्दर्शन का विषय बने - ऐसा कोई धर्म ही नहीं है। ___सम्यग्दर्शन का विषय तो मात्र भूतार्थ ऐसा त्रिकाली ध्रुव द्रव्य (पर्यायरहित) ही है। उसी के आश्रय से सम्यग्दर्शन होता है, अन्यथा सम्यग्दर्शन नहीं होता। (आत्मधर्म : दिसम्बर १९७६, पृष्ठ-२६)
३२. प्रश्न - सम्यग्दर्शन तो राग छोड़ने पर होता है न ?
उत्तर - राग की रुचि छोड़कर स्वभाव की रुचि करने से सम्यग्दर्शन होता है। सम्यग्दर्शन होने पर राग से भिन्नता भासित होती है, राग सर्वथा नहीं छूटता; पर राग को दुखरूप जानकर उसकी रुचि छूटती है।
(आत्मधर्म : जून १९७७, पृष्ठ-२५) ३३. प्रश्न-गुण-भेद के विचार से भी मिथ्यात्वनटले तो मिथ्यात्व कैसे टलेगा?