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मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन सम्यग्दर्शन के लिये ज्ञान के क्षयोपशम की आवश्यकता नहीं, लेकिन आत्मरुचि की ही आवश्यकता है।
(आत्मधर्म : जुलाई १९७६, पृष्ठ-२१-२२) २१. प्रश्न - इतने अधिक शास्त्र हैं, उनमें सम्यग्दर्शन के लिए विशेष निमित्त भूत कौन-सा शास्त्र है?
उत्तर - स्वयं जब स्वभाव को देखने में उग्र पुरुषार्थ करता है, तब उससमय जो शास्त्र निमित्त हो, उसको निमित्त कहा जाता है। द्रव्यानुयोग हो, करणानुयोग हो, चरणानुयोग शास्त्र हो, वह भी निमित्त कहा जाता है, प्रथमानुयोग को भी बोधिसमाधि का निमित्त कहा है।
(आत्मधर्म : जुलाई १९७६, पृष्ठ-२०) २२. प्रश्न-अपनी आत्मा को जानने से ही सम्यग्दर्शन होता है, तो फिर अरहंत के द्रव्य-गुण-पर्याय को जानने की क्या आवश्यकता है ?
उत्तर - अरहंत के द्रव्य-गुण-पर्याय को जानना आवश्यक है। अरहंत की पूर्ण-पर्याय को जानने पर ही, वैसी पर्याय अपने में प्रगट नहीं हुई है; इसलिये उसे स्वद्रव्य की तरफ लक्षित करने पर दृष्टि द्रव्य के ऊपर जाती है और सर्वज्ञस्वभाव की प्रतीति होती है। इसलिये अरहंत के द्रव्य-गुण-पर्याय को जानने पर सम्यग्दर्शन हुआ - ऐसा कहा जाता है।
(आत्मधर्म : जून १९७७, पृष्ठ-२६) २३. प्रश्न - शुद्धस्वरूप का इतना विशाल स्तंभ दिखलाई क्यों नहीं पड़ता? ___ उत्तर - दृष्टि बाहर ही बाहर भ्रमावे, उसको कैसे दिखाई पड़े ? पुण्य के भाव में बड़प्पन देखा करता है, परन्तु अन्दर जो विशाल महान प्रभु पड़ा है उसे देखने का प्रयत्न नहीं करता। यदि उसे देखने का प्रयत्न करे तो अवश्य दिखाई पड़े। (आत्मधर्म : नवम्बर १९८०, पृष्ठ-२७)
२४. प्रश्न-जिनबिंब-दर्शन से निद्धति और निकांचित कर्म का भी