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________________ .118 मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन - १९वें बोल में आत्मा पर्याय के भेद को स्पर्श नहीं करता अर्थात् जिसप्रकार ध्रुव में गुण हैं, तथापि उनके भेद को स्पर्श नहीं करता; उसीप्रकार ध्रुव में पर्यायें हैं और उन्हें स्पर्श नहीं करता - ऐसा नहीं कहना है; परन्तु ध्रुव सामान्य से पर्यायें भिन्न ही हैं - ऐसे पर्याय के भेद को आत्मा स्पर्श नहीं करता, ऐसा कहकर निश्चयनय के विषय में अकेला सामान्य द्रव्य ही आता है - ऐसा बतलाया है। (आत्मधर्म : जनवरी १९७७, पृष्ठ-२५) १७. प्रश्न- सम्यग्दर्शन नहीं होता, इसमें पुरुषार्थ की निर्बलता को कारण माने ? उत्तर - नहीं; विपरीतता के कारण तो सम्यग्दर्शन अटकता है और पुरुषार्थ की निर्बलता के कारण चारित्र अटकता है- ऐसा न मानकर सम्यक्त्व के न होने में पुरुषार्थ की निर्बलता को कारण मानना, यह तो पहाड़ जैसे महा दोष को राई समान अल्प बनाने जैसा है। जो ऐसा मानता है कि सम्यग्दर्शन अटकने में पुरुषार्थ की निर्बलता कारण है, वह इस पहाड़ जैसी विपरीत मान्यता के दोष को दूर नहीं कर सकता। (आत्मधर्म : अगस्त १९८१, पृष्ठ-२६) .. १८. प्रश्न - समयसार में शुद्धनय का अवलम्बन लेने के लिये कहा है, परन्तु शुद्धनय तो ज्ञान का अंश है, पर्याय है, क्या उस अंश के - पर्याय के अवलम्बन से सम्यग्दर्शन होगा ? उत्तर- शुद्धनय का अवलम्बन वास्तव में कब हुआ कहा जाये ? अकेले अंश का भेद करके उसके ही अवलम्बन में जो अटका है, उसके तो शुद्धनय है ही नहीं। ज्ञान के अंश को अन्तर में लगाकर जिसने त्रिकाली द्रव्य के साथ अभेदता की है, उसको ही शुद्धनय होता है। ऐसी अभेददृष्टि की, तब शुद्धनय का अवलम्बन लिया - ऐसा कहा जाता है।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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