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________________ 115 श्रीकानजी स्वामी के उद्गार १३. प्रश्न - द्रव्यदृष्टि में किसका आलम्बन होता है? उत्तर - द्रव्यदृष्टि शुद्ध अन्तःतत्त्व का ही अवलम्बन लेती है। सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र की निर्मल पर्याय भी बहिर्तत्त्व है, उसका आलम्बन द्रव्यदृष्टि में नहीं है। संवर-निर्जरा-मोक्ष भी पर्याय है, अतः वह भी विनाशीक होने से बहिर्तत्त्व है, उसका भी आलम्बन द्रव्यदृष्टि में नहीं है। ___ मन-शरीर-वाणी, कुटुम्ब अथवा देव-शास्त्र-गुरु - ये तो परद्रव्य होने से बहिर्तत्त्व हैं ही और दया-दान-व्रत-तपादि के परिणाम भी विकार होने से बहिर्तत्त्व ही हैं। यहाँ तो जो शुद्ध निर्मल पर्यायरूप सम्यग्दर्शन-ज्ञान-चारित्र के परिणाम हैं, वे भी क्षणिक अनित्य और एकसमयमात्र टिकते होने से, ध्रुवतत्त्व अन्तःतत्त्व की अपेक्षा से बहिर्तत्त्व ही हैं। अतः उनका भी आलम्बन लेने योग्य नहीं है। . (आत्मधर्म : अगस्त १९७९, पृष्ठ-२३) १४. प्रश्न - सम्यग्दर्शन का विषय क्या है ? उत्तर - समयसार की १३वीं गाथा में कहा है कि नवतत्त्वरूप पर्यायों में अन्वयरूप से विद्यमान भूतार्थ एकरूप सामान्य ध्रुव वह सम्यग्दर्शन का विषय है। पंचाध्यायी (अध्याय-२) में भी कहा है कि भेदरूप नवतत्त्वों में सामान्यरूप से विद्यमान अर्थात् ध्रुवरूप से विद्यमान वह जीव का शुद्ध भूतार्थस्वरूप है। इसप्रकार भेदरूप नवतत्त्वों से भिन्न शुद्ध जीव को बतलाकर उसे सम्यग्दर्शन का विषय अर्थात् ध्येयरूप बतलाया है। ___ जब जीव की श्रद्धापर्याय ध्येयभूत सामान्य ध्रुव द्रव्यस्वभाव की ओर झुकती है, तभी सम्यग्दर्शन एवं निर्विकल्प स्वानुभव होता है।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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