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मोक्षमार्ग की पूर्णता : सम्यग्दर्शन यदि आनन्द का वेदन न हो तो उसकी दृष्टि द्रव्य पर गई ही नहीं।
जिसकी दृष्टि द्रव्य के ऊपर जावे, उसको अनादिकालीन राग का वेदन टलकर आनन्द का वेदन पर्याय में होगा। ऐसी दशा में उसकी दृष्टि में द्रव्य आया है, तथापि वेदन में द्रव्य आता नहीं; क्योंकि पर्याय द्रव्य का स्पर्श करती नहीं।
प्रभु की पर्याय में प्रभु का स्वीकार होने पर उस पर्याय में प्रभु का ज्ञान आता है; किन्तु पर्याय में प्रभु का - द्रव्य का वेदन नही आता।
यदि वेदन में द्रव्य आवे तो द्रव्य का नाश हो जाये; परन्तु द्रव्य तो त्रिकाल टिकनेवाला है, इसलिये वह पर्याय में आता नहीं अर्थात् पर्याय सामान्य द्रव्य को स्पर्श नहीं करती - ऐसा कहा।
(आत्मधर्म : मई १९८०, पृष्ठ-२५) ११. प्रश्न - सम्यग्दर्शन और आत्मा भेदरूप हैं या अभेदरूप हैं ?
उत्तर - यह सम्यग्दर्शनादि निर्मल पर्यायें और आत्मा अभेद हैं। राग का और आत्मा का तो स्वभावभेद है; किन्तु यह सम्यग्दर्शन और शुद्धात्मा अभेद हैं।
परिणति स्वभाव में अभेद होकर परिणमित हुई है, आत्मा स्वयं अभेदपने उस परिणतिरूप से परिणमित हुआ है - उसमें भेद नहीं है।
व्यवहार सम्यग्दर्शन तो विकल्परूप है, वह कहीं आत्मा के साथ अभेद नहीं है।
(आत्मपर्म : जुलाई १९७७, पृष्ठ-२४) १२. प्रश्न - दृष्टि के विषय में वर्तमान पर्याय शामिल है या नहीं ? ____ उत्तर - दृष्टि के विषय में मात्र ध्रुवद्रव्य ही आता है। पर्याय तो द्रव्य को विषय करती है, परन्तु वह ध्रुव में शामिल नहीं होती; क्योंकि वह विषय करनेवाली है। विषय और विषयी भिन्न-भिन्न हैं।
(आत्मधर्म : मई १९७०, १-२३)