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________________ 108 मोक्षमार्ग की पूर्णता ___जहाँ एक ही जीव अथवा एक ही पुद्गल द्रव्य के एक गुण का परिणमन अन्य गुण के परिणमन में कुछ भी परिवर्तन करने में समर्थ नहीं है, वहाँ हम-आप अन्य जीव द्रव्य की अनुकूल-प्रतिकूल पर्याय में परिवर्तन कर सकें यह कैसे सम्भव है ? अर्थात् असम्भव ही है। __ संक्षेप में मूलतः यह समझना आवश्यक है कि कोई भी द्रव्य किसी भी अन्य जीव अथवा पुद्गल में अपनी ओर से कुछ भी परिवर्तन नहीं कर सकता। ८७. प्रश्न - आपके इस समग्र कथन से हमें क्या लाभ है ? उत्तर - १) वस्तु व्यवस्था का यथार्थ ज्ञान अर्थात् - द्रव्य, गुण, पर्याय की स्वतन्त्रता का ज्ञान हो जाता है। ___२) अव्रती सम्यग्दृष्टि के जीवन की जिन-जिन घटनाओं से जब हम आशंकित तथा भ्रमित हो जाते हैं एवं अंदर ही अंदर मानसिकरूप से अस्वस्थ होते हैं, तब हमें उन सब शंकाओं का समाधान मिल जाता है। ___ जैसे-चक्रवर्ती भरत और बाहुबली का युद्ध, मधुराजा का पापाचार और उसी भव में मुक्ति की प्राप्ति, राम-लक्ष्मण के आपस का बंधु प्रेम, राजा पवनकुमार का सती अंजना के साथ उपेक्षा सहित व्यवहार, तदनन्तर एकदम अति रागरूप कार्य आदि। ३) व्रती श्रावक के जीवन में भी अघटित ऐसी अनेक घटनाएँ घटित हो जाती हैं, उनका भी समाधान मिलता है, जैसे- सेठ सुदर्शन, मुनिराज विष्णुकुमार, मुनिराज श्रुतसागर तथा आचार्य श्री अकम्पन जैसे महापुरुषों के जीवन की घटनाओं से हम चंचल-चित्त नहीं होते। ____४) गजकुमार, सुकौशल आदि मुनिराजों के पूर्वकालीन जीवन से कुछ आश्चर्य महसूस न होकर सहजता की प्रतीति होती है। ५) मोक्षमार्ग के साधक एवं बाधक गुणस्थानों में होनेवाली घटनाएँ भूमिका के अनुसार सहज होनेवाले कार्य हैं - ऐसा निर्णय होता है।
SR No.007126
Book TitleMokshmarg Ki Purnata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashpal Jain
PublisherTodarmal Smarak Trust
Publication Year2007
Total Pages218
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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