________________
भेदविज्ञान का यथार्थ प्रयोग
अनादि की मिथ्याश्रद्धा का नाशकर, सम्यक्
श्रद्धा उत्पन्न कैसे हो ? प्रश्न-अनादि से चली आ रही मान्यता का नाश कैसे होगा?
उत्तर - भाई ! मान्यता का तो प्रतिसमय नया-नया उत्पाद होकर, नाश भी होता रहता है; इसलिये विपरीत मान्यता का काल अनादि नहीं है वरन् श्रृंखला अनादि की है। ऐसी श्रृंखला तोड़ने के लिये अनन्त समय नहीं चाहिये, मात्र एक समय ही पर्याप्त है । जैसे एक अविवाहित कन्या को सगाई का दस्तूर होते ही अपने पिता के घर को अपना मानना छोड़ने में मात्र एक क्षण ही लगता है। उसी प्रकार पर को अपना मानना छोड़कर, अपने त्रिकाली ज्ञायक ध्रुव को अपना मानने के लिये, मात्र एक क्षण ही पर्याप्त होता है। कारण, पर्याय का काल ही एक समय होता है, फिर तो बिना प्रयास के उसका व्यय हो जाता है। वास्तव में तो विपरीत मान्यता को छोड़ना भी नहीं होता, वरन् सत्यार्थ मान्यता का उत्पाद होते ही विपरीत मान्यता का उत्पाद नहीं होता; इसी को विपरीत मान्यता का नाश किया, ऐसा कहा जाता है।
प्रश्न – सत्यार्थ मान्यता का उत्पाद कैसे हो ?
उत्तर-मान्यता श्रद्धा गुण की पर्याय है। श्रद्धा का भी प्रतिसमय जन्म होता है। निःशंक निर्णय के द्वारा, ज्ञायक की श्रद्धा होती है, निर्णय वास्तविक समझ के द्वारा होता है। सत्यार्थ समझ के लिये, सत्यार्थमार्ग प्राप्त ज्ञानी पुरुषों का समागम कर, जिनवाणी में वीतरागता पोषक विषयों के द्वारा मार्ग निकालने की दृष्टि प्राप्त कर लेनी चाहिये, उसके द्वारा जैसे भी बने उस प्रकार, अपने आत्मा के त्रिकाली स्वरूप