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________________ 4) वाणीभूषण प.पू.श्री.प्रीतिसुधाजी म.सा डॉ. लुंकड ने भगवान महावीर के 'सामायिक' इस महत्वपूर्ण विषय पर गहरा चिंतन करके उसके मूल स्वरूप को कायम रखते हुए उसे सरल एवं सर्वोपयोगी बनाने का प्रयास किया है। जिंदगी के चढाव-उतार देखने के बाद संसार की असारता ध्यान में आ ही जाती है। सुख वस्तु से या व्यक्ती से मिल नही सकता ऐसा बोध हो जाने के बाद अपने आपमें झाकने का भाव जागृत होता है। अपने आपसे समझौता करने के लिए सर्व श्रेष्ठ उपाय है 'सामायिक'। बचपन से सिखाई गई या सुनी हुई सामायिक याने 48 मिनट की फॉरमेलिटी नहीं है, बल्कि समय से आत्मा का तालमेल बिठाने की एक श्रेष्ठ तम उपलब्धि है - जिंदगी की फलावरिंग है सामायिक एकांत मांगती है किन्तु अकेलापन महसूस नही होने देती। सामायिक सायन्स है, जीवन की कला का उत्कृष्ट विज्ञान है , ये अंधश्रध्दा का विषय नही है। इसे समझाने की डॉक्टर साहब ने पूरी कोशिश की है - एतदर्थ हर पाठक की ओर से तथा हम साध्वी मंडळ 15 की ओर से इनका जितना अभिवादन करे उतना कम है / - साध्वी प्रीतिसुधा 15 43
SR No.007120
Book TitleSamayik Ek Adhyatmik Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Lunkad
PublisherKalpana Lunkad
Publication Year2001
Total Pages60
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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