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________________ आध्यात्मिक भाषामें योग कहते हैं। जैसे ऋण और धन दोनों विद्युत धाराएँ मिलकर अद्भुत विद्युत शक्ति निर्माण होती है और उसके द्वारा अनोखे कार्य संपन्न होते हैं। वैसे ही आत्मा परमात्मा को मिलने से(आत्मा परमात्मा बननेसे ) अद्भुत शक्ति उत्पन्न होती है। इसकी अनुभूति केवल समता के शिखर पर पहुँचा हुआ साधक ही ले सकता है । ऐसा साधक एक देहातीत जीवनमुक्त अवस्था प्राप्त करता है और अपने स्वभाव मे स्थिर हो जाता है। यही मोक्षप्राप्ति है। यही सामायिक का अंतिम ध्येय है। यही सामायिक का परमोच्च लाभ है। इसलिए भगवति सूत्र मे सामायिक क्या है ? इसका उत्तर इसी आध्यात्मिक भावना की अंतिम सीमा पर पहुंचकर किया गया है । उत्तर है "आया सामाइए,आया सामाइयस्स अटठे"। अर्थात - आत्मा ही सामायिक है और आत्मा ही सामायिक का-अर्थ (फल) है। ११) जैनेतर धर्मो मे समताभाव की मान्यता अ) भगवद् गीतामे समताभाव का महत्व वर्णन किया गया है। १) “समत्वंयोग उच्यते" - समता को योग कहते है। २) समं सर्वेषु भुतेषु तिष्ठन्तं परमेश्वरम्। विनश्यत्स्वविनश्यतं यः पश्याति स पश्याति || १३-२८ अर्थात - सब जीवोंमे समभाव मे स्थित परमात्मा को जो देखता है, विनाशी चीजों मे अविनाशी परमात्मा को देखता है, वही सचमुच देखता है। ३०
SR No.007120
Book TitleSamayik Ek Adhyatmik Prayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhash Lunkad
PublisherKalpana Lunkad
Publication Year2001
Total Pages60
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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