________________
खाना, पीना, रहना सब अलग अलग है, भिन्न है । फिर समता किधर है ? अगर समानता है तो वह केवल एक ही स्तर पर हो सकती है - चेतना के स्तरपर, आत्मा के स्तरपर " चेतना के स्तरपर या आत्मा के स्तरपर जगके सभी प्राणिमात्र एक समान है इसकी अनुभूती तथा ज्ञान होना समताभाव है ।" "मुझमे जो चेतना है, उसी प्रकार की चेतना हर एक प्राणीमात्रमें भरी हुई है। यह अनुभूति समता भाव है"
हर प्राणि की आत्मा पृथक पृथक होते हुए भी, सभी आत्माओंके गुण समान हैं। हर आत्मा शाश्वत है, नित्य है, अविनाशी है। हर आत्मा अपने कर्म का कर्ता और भोक्ता भी है। अपने कर्मबंधनों के कारण हर आत्मा ८४ लक्ष योनियोंमें भटकती रहती है । और जो भी आत्मा साध ना से अपने कर्मबंध तोडने में, कर्मोंकी निर्जरा करने में सफल होती हैं, वे मुक्तात्मा या सिध्दात्मा बन जाती है ।
• इसतरह आत्मा के स्तरपर जगके सभी प्राणिमात्र समान है । आत्मा के कर्मबंध तोडकर उसे परमात्मा बनाने के लिए अतिदुर्लभ मनुष्य जन्म यह सबसे बडी सुवर्णसंधी है।
६) इस समताभाव को सामायिक में कैसे पाए ? सामायिक में समता भाव पाने के लिए सामायिक की विधि में दो अत्यंत शास्त्रीय परमखोज की स्टेपस् (पगडंडिया) बताए गए हैं। प्रथम स्टेप है- काउसग्ग याने के कायोत्सर्ग
दूसरा स्टेप है - धर्मध्यान तथा शुक्लध्यान
-
समता भाव पाने के लिए (याने कि सभी प्राणिमात्रों की चेतनासमान हैं) यह जानने के लिए सर्वप्रथम हमे खुद की अंदरूनी चेतना का ज्ञान होना चाहिए, खुद की चेतना को समझना तथा अनुभव करना