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१- समता सर्व भुतेषु संयमः शुभ भावना ।
आर्त रौद्र परित्याग स्तद्धि सामायिक व्रतम ॥
अर्थात- सभी प्राणिमात्रोंके प्रति समता भाव रखना, मन में सयंम. और शुभभावना होना आर्तध्यानं तथा रोर्दध्यान का त्याग करके धर्मध्यान में लीन होना सामायिक व्रत है।
२- जो समो सव्वभुएस तसेसु थावरेसु य । तस्स सामाइंय होई, इह केवलि भासियं ॥ अर्थात- जो व्यक्ति त्रस और स्थावर रूप सभी जीवोंपर संमभाव
धारण करता है। उसीकी सामायिक शुद्ध होती है ऐसा केवली 'भगवान ने कहा है।
उपरनिर्दिष्ट दो श्लोकोंसे पता चलता है कि, "सभी नीवोंके प्रति समता भाव प्राप्त करने के लिए सयंमपूर्वक शुभभावनाओंके साथ धर्मध्यान करना ही सामायिक है” यही सामायिक की सही व्याख्या है
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इसलिए सामायिक का मुख्य उद्देश : " समता भाव" प्राप्त करना है ।
५) समता भाव का अर्थ क्या है ?
"समता सर्व भूतेषु" याने कि सर्व प्राणिमात्रों के प्रतिसमता भाव याने कि मैं, मानव और सभी प्राणिमात्र समान है ऐसाजानना । जग मे अनंत प्राणिमात्र हैं। जिनका वर्गीकरण आधुनिक विज्ञान ने अनेक ; Phylums) में किया है, और जैनशास्त्र उनका वर्गीकरण एकीदिया से लेकर पंचेंदियातक करता है। ऐसे असंख्यजीव, मैं और सभी आदमी इनमें समानता क्या है ? सबका रंग, रूप, आकार,
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