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________________ (23) राजनीति के क्षेत्र में दूत का कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण माना जाता है। 'नीतिवाक्यामृत' में आचार्य सोमदेव ने निसृष्टार्थ, परिमितार्थ एवं शासनहर नामक तीन दूतों की चर्चा की है। कवि रइधू ने उनमें से परिमितार्थ एवं शासनहर नामक दूतों के कार्योल्लेख प्रस्तुत ग्रन्थ में किए हैं। मध्यकाल में निसृष्टार्थ-दूत की कल्पना करना कठिन था, क्योंकि जिसके द्वारा निश्चित किए हुए सन्धि-विग्रह को उसका स्वामी प्रमाण मानता है वही निसृष्टार्थ कहलाता था, जैसे पाण्डवों के श्रीकृष्ण। उसकी संभावना इस समय नहीं रही थी। हाँ, राजा द्वारा भेजे गए सन्देश एवं शासन-लेख को जैसे का तैसा शत्रु के पास कहने या देने वाले परिमितार्थ व शासनहर नामक राजदूतों की चर्चाएँ प्रचुर रूप में अवश्य मिलती हैं।' ____ श्रीपाल जब अंगदेश पहुँचकर वहाँ के राजा को अपने वश में करने के लिए आक्रमण करने का विचार करता है तब उसका मंत्री उसे सलाह देता है कि एकाएक आक्रमण करना उपयुक्त नहीं होता। सर्वप्रथम दूत के हाथ सन्देश भेजना चाहिए और जब वह असफल हो जाय तभी विग्रह करना चाहिए। यथा पहिलउ पेसहि दूउ निरुत्तउ। ताय सरिसु सो तुम्ह पउत्तउ।। जइ सो तुम्हहँ आयरें माणाइ। णेहु करिवि णियरज्जहो ठाणइ।। ता णरेस णउ विग्गहु किज्जइ। णं तो संगामेण दलिज्जइ।। ____9/3/7-9 मनोरंजन के साधनों में कवि ने वाद्य, गीत आदि के उल्लेख किए हैं किन्तु प्रसंगवश जिन नवीन बातों की चर्चा कवि ने की है; वे हैं चित्रलेख-नृत्य एवं चंचुपुट-ताल । कुंडलपुर का राजा श्रीपाल के गुणों पर आकर्षित होकर उसे अपनी कन्या देना चाहता है। श्रीपाल के राजदरबार में पहुँचते ही राजकुमारी उसे चंचुपुट-ताल पर चित्रलेख-नृत्य प्रदर्शित करती है। यथा सिरिपालें ता पडह विवज्जिउ। चित्तलेहणच्च जि समप्पिउ। चंचुपुटतालु जि तेणोद्धरिउ । ताहि मणु खणमत्तें हरियउ।। 8/3/12-13 सामाजिक रीति-रिवाजों की की चर्चाएँ भी कवि ने प्रचुर रूप से की हैं। पुत्रजन्म, विवाह, 1. स त्रिविधो निसृष्टार्थ : परिमितार्थः शासनहरश्चेति। नीतिवाक्यामृत 13/3 (दिल्ली, 1950)।। '
SR No.007006
Book TitleSvasti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Balbir
PublisherK S Muddappa Smaraka Trust
Publication Year2010
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English
File Size16 MB
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