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वरकुललंछणु जण उवहसणउ। संजमसीलुसरोवरु सुसणउं।। 6/18/3 मध्यकाल में विदेशों के साथ भारत के अच्छे सम्बन्ध थे। कई व्यापारिक वस्तुओं का आयात-निर्यात (Import-Export) होता था। विदेश-यात्रा का प्रमुख साधन समुद्री-पोत थे। महाकवि रइधू ने श्रीपाल की विदेश-यात्रा के बहाने यात्री के लिए अत्यावश्यक सामग्री, विदेशों में ध्यान देने योग्य बातों एवं समुद्री-यात्रा की कठिनाइयों आदि का सुन्दर वर्णन किया है।
धवल सेठ जब समुद्री यात्रा प्रारम्भ करता है तब उसके पूर्व वह अपने साथ चलने के लिए दस सहस्र सुभटों को निमन्त्रित करता है तथा ध्वजा, छत्र, लम्बे-लम्बे बाँस, बड़े-बड़े बर्तन, ईंधन, पानी, बारह-वर्ष तक के लिए सभी साथियों के लिए अनाज, विविध वाद्य, तिल-तेल, चन्दन, प्रभृति सामग्रियाँ तैयार करता है। यथा ।
..... । दह सहस्सइँ सुहड विणिरुट्टाणिया।। वाहण-धय-छत्तइँ णिरु सोहिया। उज्झियवंसहि सठपुणुरोहिया।। पंचसत्तखण मणसुह दायण। तेच्छु णिहिय पुणु णाणा भायण।। इंधणु पाणिउ पउरु जि सिंचिउ। बारहवरिसहु संवलु खंचिउ।। बजमाण णाणाबिह तूरहिं। जलजंतइ पुज्जिय दहि-कूरिहं।। चंदण वंदणेहि तिल-तेलहिं। जलदेविहु अच्चिवि सुहवेलहिं।।
5/13/1-6 इसी प्रकार जहाज में बैठते समय यात्री अपने शरीर को सम्भवतः भैरुंड-पक्षी के चर्म से आच्छादित करते थे, सिर पर लोहे की टोपी धारण करते थे तथा मुग्दर, बाँस के डंडे आदि हाथ में धारण करते थे। यथा
इय जंपिवि मोग्गर पुणु पयंड। उच्चाइय उब्भिय वंस इंड।। मरजीयारुहिय खणेण सीस। ढारिय आयस टुप्परियसीस।। भैरुंड विहंगम मयण तेवि। णउ सुवहि रयण णिद्दापरेवि।।
5/20/2-4 मध्यकालीन समुद्र-यात्रा में कई कठिनाइयाँ उपस्थित होती थीं। किन्तु सबसे अधिक कठिनाई समुद्री डाकुओं के आक्रमण से होती थी। समुद्री डाकू सामूहिक रूप में बड़ी भयंकरता के साथ आयुधास्त्रों से आक्रमण कर दिया करते थे। धवल सेठ अपने साथियों