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(12) ग्रन्थ मूल्यांकन _प्रस्तुत सिरिवालचरिउ एक पौराणिक चरित काव्य है। ग्रन्थकार महाकवि ने श्रीपाल और मैनासुन्दरी के आख्यान को लेकर सिद्धचक्रविधान के महत्त्व को प्रदर्शित किया है। सिद्धचक्र वह मांत्रिक अनुष्ठान है जो विधिपूर्वक आषाढ़, कार्तिक और फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक विशेष विधि से सम्पन्न किया जाता है। इस अनुष्ठान का महत्त्व जैन-शास्त्रों में बहुत वर्णित है। मैनासुन्दरी ने सिद्धचक्रयंत्र का अभिषेक किया
और उसी अभिषेक के जल से सिंचन करने पर श्रीपाल के कुष्ठ-रोग को दूर कर उसे उसने पूर्ण स्वस्थ बनाया। ___ रइधू ने अपने इस काव्य में चरित-काव्य के गुणों का समावेश करने के हेतु वर्धमान महावीर की समवशरण-सभा का एक सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया है। उसमें बताया है सम्राट श्रेणिक भगवान महावीर से सिद्धिचक्र विधान के महत्त्व एवं उसके फल-भोक्ता व्यक्ति के आख्यान के कथन की प्रार्थना करता है। ___ गौतम गणधर श्रेणिक के प्रश्नों का उत्तर देते हुए श्रीपाल की कथा का वर्णन करते हैं। कवि रइधू ने आरम्भ में ही चरित-काव्य की नायिका मैनासुन्दरी की सत्यनिष्ठा, विवेकशीलता एवं सम्यक्-श्रद्धा का सुन्दर चित्रण किया है। कवि ने नायक श्रीपाल के गुणों का विकास तो पाँचवीं सन्धि से दिखलाया है, किन्तु आरम्भ की 4 सन्धियों में नायिका के चरित के गुणों पर बहुत ही सुन्दर प्रकाश डाला है। कवि ने नायिका की शिक्षा-दीक्षा का विवेचन करते हुए लिखा है
गुण-मत्ताभेय. कव्वअणेयइँ वायरणइ-लंकार-विहि। सुरकोसुपसिद्धउ जोइसु सिद्धउ नय-पमाण संजणिय दिहि।।
1/18 घत्ता पुणु रोय अणेयइँ उसह जोयइँ सामुदु जि तणु-लक्खणइँ। मुणि पासि पढेप्पिणु पय-पणवेप्पिणु जिण अच्चेप्पिणु सुहमण:।।
1/14 घत्ता प्रसंगवश कवि रइधू ने भारतीय नारी के आदर्श का बहुत ही सुन्दर विवेचन किया है। जब पहुपाल (पृथिवीपाल) नृपति मैनासुन्दरी को सुरसुन्दरी के समान ही जीवन-साथी के 1. सिरिवाल० 1/5