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________________ उसका सारा शरीर गलने लगा। अतः अपने चाचा वीरदमन को राज्य सौंपकर वह अपने पाँच सौ कोढ़ी साथियों के साथ राज्य के बाहर निकल गया और चलते-चलते उज्जयिनी पहुंचा। उधर राजा पहुपाल, जो कि अपनी पुत्री मैनासुन्दरी के कर्मफल की बात सुनकर क्रुद्ध होकर बैठा था, उसने उस कोढ़ी राजा श्रीपाल के उज्जयिनी आगमन की बात सुनी। वह तुरन्त जाकर उससे मिला तथा बातचीत कर उसी के साथ मैनासुन्दरी का विवाह कर दिया। रानी, मंत्री आदि सभी ने राजा को धिक्कारा लेकिन उसने एक भी नहीं सुनी तथा दान-दहेज के साथ मैनासुन्दरी को विदा कर दिया। मैनासुन्दरी अपने माता-पिता, गुरुजनों एवं परिचितों से क्षमायाचना कर अपने पतिगृह चली गई। इस विवाह से श्रीपाल अत्यन्त प्रसन्न था। उसने अपनी पत्नी मैनासुन्दरी को अपना सारा वृत्तान्त यथार्थ रूप में बता दिया। — (कड़वक 1-20, तृतीय-सन्धि) मैनासुन्दरी के मन में इस विवाह से किसी भी प्रकार का दुःख उत्पन्न न हुआ। वह तन-मन-धन से ग्लानि-रहित होकर पतिसेवा में लीन हो गई। प्रतिदिन जिनदेव की पूजा-भक्ति करती तथा पति को गन्धोदक का सेवन कराती। फलस्वरूप श्रीपाल का कोढ़ धीरे-धीरे दूर होने लगा। ___एक दिन पति-पत्नी दोनों जिन-मन्दिर गए। वहाँ एक मुनिराज के दर्शन हुए। मुनिराज ने उन्हें सिद्धचक्र-विधि एवं उसके माहात्म्य पर उपदेश किया। मैनासुन्दरी एवं श्रीपाल दोनों ही उससे प्रभावित होकर वापिस आए और तदनुसार सिद्धचक्र का विधि-विधान करने लगे। फलस्वरूप श्रीपाल का शरीर पुनः कुन्दन के समान बन गया। ___इधर, (राजा) पहुपाल ने क्रोधवश मैनासुन्दरी का विवाह कोढ़ी के साथ कर तो अवश्य दिया था, किन्तु बाद में वह रोने-कलपने लगा तथा बार-बार अपने को धिक्कारने लगा। एक दिन उसकी रानी जिन-मन्दिर गई। वहाँ वह अपनी पुत्री मैनासुन्दरी को एक सर्वागसुन्दर एवं स्वस्थ युवक के साथ देखकर स्तम्भित रह गई। उसे विश्वास हो गया कि मेरी पुत्री पथभ्रष्ट हो गई है। मैनासुन्दरी ने अपनी माँ के हृदय की बात जान ली। अतः तुरन्त ही सिद्धचक्र के माहात्म्य से श्रीपाल के पूर्ण स्वस्थ हो जाने का सारा वृत्तान्त उसे कह सुनाया, जिससे माँ फूली न समाई। वह दौड़ी-दौड़ी घर गई। जब राजा को यह समाचार मिला तो वह श्रीपाल के पास आया। उसे गले लगाया तथा अपने घर ले आया और वहीं रहने का आग्रह किया, जिसे श्रीपाल ने स्वीकार कर लिया। . (कड़वक 1-16, चतुर्थ-सन्धि) आगे का कथानक अतिविस्तृत है। उसमें श्रीपाल का भृगुकच्छ (भडौंच) में 10 सहस्र
SR No.007006
Book TitleSvasti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Balbir
PublisherK S Muddappa Smaraka Trust
Publication Year2010
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English
File Size16 MB
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