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________________ (6) अर्थात् इस संसार में विद्या, यौवन, सौन्दर्य, धन, भवन, परिजनों का स्नेह एवं प्रियजनों का संयोग पुण्य से ही प्राप्त होता है। उक्त समस्यापूर्ति से राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ। उसने प्रसन्न होकर सुरसुन्दरी से इच्छानुसार वरदान माँगने को कहा। सुरसुन्दरी ने भी अवसर देख वरदान माँग लिया और कौशाम्बी-नरेश के पुत्र राजा हरिवाहन से अपना विवाह कर देने की प्रार्थना की। राजा ने वैसा ही कर दिया। ___ अब मैनासुन्दरी की बारी थी। राजा ने उसे भी उक्त समस्या की पूर्ति हेतु आदेश दिया। उसने निम्न प्रकार उस समस्या की पूर्ति की जिण-सासण-णिग्गंथ-गुरु वय-तउ-णिम्मलु देहु। ___ अप्पा-परहँ विचार-गुणु पुण्णे लब्भइ एहु।। (2/3) ___ अर्थात् इस संसार में जिनशासन, निर्ग्रन्थ-गुरु, व्रत एवं तप करने की क्षमता, निर्मल देह । तथा अपने-पराए का विवेक-गुण ये सब पुण्य से ही प्राप्त होते हैं। __ मैनासुन्दरी की समस्या-पूर्ति से राजा ने प्रसन्न होकर उसे भी इच्छानुसार अपना वर चुनने का आदेश दिया किन्तु इसे सुनकर वह चुपचाप रह गई। राजा के बार-बार पूछने पर उसने बड़ी ही लज्जा के साथ निवेदन किया कि कुलवती कुमारियाँ कभी भी अपने मुँह से वर नहीं माँगती। माता-पिता, स्वजन एवं गुरुजन जिनके साथ उसका विवाह कर देते हैं, उनके लिए वही वर कामदेव के तुल्य हो जाता है। चाहे वह अंधा, लूला, लँगड़ा, काना, बहरा, कोढ़ी, रोगी, राव, रंक, बाल, वृद्ध, सुन्दर, कुरूप, मूर्ख, पण्डित, निर्दयी, निर्लज्ज अथवा सर्वगुण-सम्पन्न, कैसा ही क्यों न हो, वही उन कुमारियों के लिए सर्वस्व बन जाता है। कन्याओं का भला-बुरा उनके कर्मों के फल के अनुसार ही होता है। राजा मैनासुन्दरी के इस कथन से बड़ा क्रुद्ध हो जाता है। (कड़वक 1-14 द्वितीय-सन्धि) चम्पापुर में राजा अरिदमन राज्य करता था। उसकी रानी कुन्दप्रभा से श्रीपाल नामक एक होनहार पुत्ररत्न की प्राप्ति हुई। बड़ा होने पर उसे विद्यार्जन-हेतु गुरु के पास भेजा गया, जहाँ उसने अक्षर, मात्रा, पुराण, तर्क, अलंकार, ग्रह, प्रमाण, छत्तीस-गुण, गृहकार्य, जल-संतरणं, राजनीति-शिक्षा, छंद, व्याकरण, बहत्तर-कलाएँ, विज्ञान, नाटक-भेद, गान्धर्वविद्या एवं सवारी आदि की शिक्षाएँ अल्पकाल में ही प्राप्त कर लीं। शिक्षा-प्राप्ति के बाद ही श्रीपाल पर घोर संकट उपस्थित हो गया। उसके पिता की अचानक ही मृत्यु हो गई। अतः राज्यभार उसे सँभालना पड़ा किन्तु दुर्भाग्य से उसे भी अकस्मात् कुष्ठ-व्याधि हो गई।
SR No.007006
Book TitleSvasti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNalini Balbir
PublisherK S Muddappa Smaraka Trust
Publication Year2010
Total Pages446
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English
File Size16 MB
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