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शिव की अष्टमूर्ति और त्र्यम्बक मन्त्र
त्र्यम्बक मंत्र में 'सुगन्धिम्' पद द्वारा पृथ्वीरुप शिव का निर्देश है। 'यजामहे' के द्वारा अग्नि व यजमान का सूचन है। 'सुगन्धम्' पद सोम - औषधि और 'पुष्टिवर्धनम्' पद सूर्य और चन्द्र का सूचन करते हैं। 'अमृतम्' का सम्बन्धी 'रस' अर्थात् जल के साथ है। 'त्र्यम्बक में तेज, वायु और आकाश तत्त्व सूचित है। समग्र मन्त्र - त्र्यम्बकं । यजामहे | सुगन्धि / पुष्टिवर्धनम् / उर्वारुकमिव । बन्धनान्मृत्योः । मुक्षीय / मामृतात् ।।
इस तरह आठ खंडो में विभाजित लगता है। 'सुगन्धि' और 'पुष्टिवर्धन' के रुप में त्र्यम्बक 'भव' है, 'मृत्यु' के रुप में भीम और रुद्र है 'अमृतदाता' के रुप में सदाशिव है।
मन्त्र के वर्ण
त्र्यम्बक मन्त्र में मातृका के स्वरों और व्यंजनों की अलग गिनती करने से ७७ वर्ण होते है। 7+7 = 14 = 1+4= 5 होता है। ॐ नमः शिवाय' पंचाक्षरी मन्त्र है, शिव पञ्चवक्त्र है। और तन्त्र के पञ्च आम्नाय के अधिष्ठाता भी शिव है । ललितासहस्रनाम व त्र्यम्बकमन्त्र के पदों की तुलना करने से लगता है कि इच्छा शक्ति, ज्ञानशक्ति और क्रियाशक्ति - त्रिशक्ति रुप अम्बिका के साथ सामरस्य रहनेवाले शिव ही मुक्ति व अमृत के प्रदाता है । तन्त्रशास्त्र में त्र्यम्बकमन्त्र को मन्त्रराज व मृत्युमोचक मन्त्र माना गया है। इस मन्त्र का अग्नि में होमात्मक प्रयोग करने वाले साधक पर सुधाप्लावित देह वाले शंकर संतुष्ट रहते हैं और आयुष्य, आरोग्य, सम्पत्ति, यश और पुत्रप्राप्ति का वर प्रदान करते हैं ।६
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