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शुक्रोपासिता मृतसञ्जीवनी विद्या का अन्य प्रकारा -
ॐ हौं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे तत्सवितुर्वरेण्यं सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् भर्गो देवस्य धीमहि उर्वारुकमिव बन्धनाद् धियो यो नः प्रचोदयात् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् स्वः भुवः भूः ॐ स: जूं हौं ॐ ॥१९
पुष्टिकारक वेद में दो त्र्यम्बक मन्त्र प्राप्त है। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ।। (ऋग्वेद ७-५९-१२)
रक्षाकारक
त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पतिवेदनम् । उर्वारुकमिव बन्धनादितो मुक्षीय मामुतः ॥ (यजुर्वेद - ३-६०) बृहद् मृत्युञ्जय माला मन्त्र -
"ॐ भूः ॐ भुवः ॐ सुवः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यं ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं ॐ घृणिः सूर्य आदित्य ॐ तत्सत् ॐ हंसात्मको यो अपामग्नेस्तेजसा दीप्यमानः नो मत्योस्त्रायतां नमो ब्रह्मणे विश्वनाभिः हाहि हाहि हाहि हावु हावु हावु ॐ हरी हंसः सोहं स्वाहा ॐ भुवः भर्गो देवस्य धीमहि ॐ नमो नारायणाय ॐ उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतोमुखं नृसिहं भीषणं भद्रं मृत्युमृत्यु नमाम्यहं भ्राजा भ्राजा भ्राजा वव्र ववायवों आधातोरण्याय वो सहस्रज्वालिनी मृत्युनाशिनी स्वाहा ॐ सुवः धियो यो नः प्रचोदयात् मामद्य ॐ हरी ॐ नमः शिवाय त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धि पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ववावं वववं ववं वेवं वेवें ववं व स जझदों झ हरी अरे वंवं मेवरय धावया दं जं ॐ जं सः स्वौ हंसः मा पालय पालय हलादय हलादय मृत्योर्मोचय मोचय सोहं स्वौं ई हंस: जूं ॐ ई स्वौ हंसः मां पालय पालय लादय लादय मृत्योर्मोचय मोचय सोहं स्वौं । ई सः जूं ॐ परो रजसे सावदों आपो ज्योतीरसोऽमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम् ।"२०
अष्टोत्तरशताक्षरी गायत्री (त्रिपुरामन्त्र)
(१) गायत्री, त्र्यम्बक एवं जातवेद मन्त्र को मिलाकर जप करने से पाप शान्त होते हैं। (२) त्र्यम्बक, गायत्री, जातवेद - इस क्रम का जप आयुष्य में वृद्धि करता है। (३) जातवेद, गायत्री और त्र्यम्बक मन्त्र के जप से शत्रुनाश होता है।
'त्रिपुरा तापिन्युपनिषत्' में अष्टोत्तर शता गायत्री का 'श्रीमहात्रिपुरसुन्दरीमन्त्र' कहा गया है।
तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि ।
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