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धियो यो नः प्रचोदयात् परो रजसेऽसावदोम् ॥ २ ॥ जातवेदसे सुनवाम सोममरातीयतो निदहाति वेदः । स नः पर्षदति दुर्गाणि विश्वा नावेव सिन्धुं दुरितात्यग्निः ॥ ३ ॥ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ ४ ॥
शताक्षरी परमा विद्या त्रयीमयी साष्टार्णा त्रिपुरा परमेश्वरी । आद्यानि चत्वारि पदानि परब्रह्मविकासीनि । द्वितीयानि शाक्तानि । तृतीयानि शैवानि ॥ ५ ॥
त्र्यम्बक मन्त्र में विशेष चैतन्य के लिए विलोम वर्ण के जप का विधान है। दक्षिणाम्नाय का मन्त्र 'ॐ जूंसः' बीज के सादि है। ऊर्ध्वाम्नाय का मूल मन्त्र मात्र है।
उभयाम्नाय में ॐ हौं जूं सः भूर्भुवः स्वः और अंत में स्वः वः भूः भुवः सः जूं हौं ॐ और बीच में त्र्यम्बक मन्त्र होता है।
मन्त्र महोदधि के अनुसार त्र्यम्बक मन्त्र ५० अक्षरों का है।
ॐ हौं ॐ जूं सः भूर्भुव: स्व: त्र्यम्बकं.......
भूर्भुवः स्वः ॐ जूं सः हौं ॐ इस मन्त्र के वामदेव कहोल और वसिष्ठ ऋषि है। पंक्ति, गायत्री और अनुष्टुप छंद है ।२२
मन्त्रमहार्णव -
मन्त्रमहार्णव में कहा गया है कि त्र्यम्बक मन्त्र को भजनेवाले के सामने स्वयं काल भी नहि देखने को समर्थ है। वसिष्ठ ऋषि है। अनुष्टुप छंद है। त्र्यम्बक पार्वती पति देवता है। त्र्यंबीज है, बं शक्ति है, कं कीलक है।
सुगन्धिं यजामहे -
'सुगन्धिं यजामहे' से सूचित होता है कि सुगन्ध युक्त पदार्थो से यह मन्त्र का होमात्मक प्रयोग होना चाहिए। नक्षत्र रोग
द्रव्य अश्विनी बुद्धिभ्रम, अनिद्रा, वायु चंदन, कमलपुष्प, गूगल, घी
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