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________________ के साथ कुण्डलिनी का मिलन होने से अविरत आनंदलोक और परम तृप्ति का अनुभव होता है। यह अमृत ही साधक को त्रिगुणातीत बनाता है। भगवद्गीता कहती है - गुणानेतानतीत्य त्रीन्देही देहसमुद्भवान् । जन्म - मृत्यु - जरा दुःखैविमुक्तोऽमृतमश्नुते ।। आदित्य, चन्द्र और अग्नि का तेज परमात्मा का तेज है। परमात्मा ओजस से भूतों को धारण करते है, रसात्मक सोम से औषधिओं का पोषण करते हैं (पुष्टि) वैश्वानर होकर अन्न का पाचन करते है५ अर्थात् बुद्धि (वर्धन) करते हैं। भगवद्गीता के तीन शब्द इस तरह समजे जा सकते है। क्षर - बन्धन, मृत्यु अक्षर - पुष्टि, वृद्धि पुरुषोत्तम - सुगन्धि, मृत्यु से मोक्ष, अमृत तीन प्रकार से 'त्र्यम्बक' मन्त्र (१) भूर्भुवः स्वः व्याहृतिओं से सम्पुटित मृत्युञ्जय मन्त्र (२) 'ॐ हौं जूं सः' से संपुटित मृतसञ्जीवनी विद्या (३) तीन व्याहृतियाँ और तीन बीज के प्रत्येक अक्षर को ॐ लगाकर जो मन्त्र बनता है वह शुक्राचार्य के द्वारा आराधित मन्त्र है। केवल मृत्युञ्जय मन्त्र (८५ अक्षर) ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । ऊर्वारुकमिव बन्धमान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः ॐ भुवः ॐ भूः ॐ ।१६ मृतसंजीवनी मन्त्र (५२ अक्षरात्मक) ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यबकं यजामहे इत्यादि ॐ स्वः ॐ भुवः भूः ॐ सः जूं हाँ ॐ ॥ ११. महामृत्युञ्जय मन्त्र (शुक्राराधित ६२ अक्षरात्मक) ॐ हौं ॐ जूं ॐ सः ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे इत्यादि ॐ स्वः ॐ भुवः ॐ भूः ॐ सः ॐ जूं ॐ हाँ ॐ ॥ इस मन्त्र के बारे में कथन है कि - आदौ प्रसादबीजं तदनु मृतिहरं तारकं व्याहृतीश्च, प्रोच्चार्य त्र्यम्बकं योजपति मृतिहरं भूय एवेतदाद्यम् । कृत्वा न्यासं षडंगं स्रवदमृतकरं मण्डलान्तः प्रविष्टं, ध्यात्वा योगीशरुद्रं स जयति मरणं शुक्र विद्याप्रसादात् ॥ 745
SR No.007005
Book TitleWorld of Philosophy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChristopher Key Chapple, Intaj Malek, Dilip Charan, Sunanda Shastri, Prashant Dave
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2011
Total Pages1002
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size30 MB
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