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________________ जन्म, बन्धन व मृत्यु के भी तीन प्रकार के हैं । जन्म - (१) माता के उदर से प्राप्त जन्म का बन्धन (२) यज्ञोपवीत से प्राप्त दूसरा जन्म (३) पूर्णाभिषिक्त होने से प्राप्त तीसरा जन्म मृत्यु - (१) प्रत्येक जन्मधारी को अनिवार्य रुप से प्राप्त है । (२) केश विभाजन, रोग, वृद्धावस्था, क्षीणता के कारण इन्द्रियों की शक्ति का मरने से नित्य मृत्यु का अहेसास (३) जिसके बाद पुन: मृत्यु न हो ऐसा स्थूल अस्तित्व का नाश और सर्व इच्छाओं का नाश बन्धन बन्धन के भी तीन प्रकार है । तान्त्रिक दृष्टि से शरीर में तीन ग्रन्थियाँ है । (१) मूलाधार चक्र से स्वाधिष्ठान चक्र का प्रथम खण्ड है। वह अग्निस्थान है। वही रुद्रग्रन्थि है। (२) मणिपुर से अनाहत चक्र का द्वितीय खण्ड है। वह सूर्य स्थान है। उसे विष्णु ग्रन्थि कहते हैं । (३) विशुद्धचक्र से आज्ञाचक्र का तृतीय खण्ड है। वह चन्द्रस्थान है, वही ब्रह्मग्रन्थि है । १२ 1 योगी इन तीन ग्रन्थि के भेदन के बाद अमृत का आस्वाद प्राप्त करता है। अग्नि, सूर्य और चन्द्र ही शिवजी के तीन नेत्र है, अत एव वे त्र्यम्बक है। मामृतात् - सायण ने मा + आमृतात् ऐसा अन्वय किया है । मा + अमृतात् अन्वय भी हो सकता है। पदपाठ में मामृतात् पद है। पदानुक्रमणी में मा + अमृतात् ऐसा अन्वय है । (१) अमृतात् - दीर्घजीवितात् । दीर्घ जीवन से मुझे बचा लो ऐसा अर्थ हो सकता है। (२) जिस मृत्यु के बाद पुन: मृत्यु की प्राप्ति न हो ऐसा मृत्यु ऐसे मृत्यु से भी मुझे मुक्त करो ऐसा अर्थ हो सकता है। (३) सायण के मतानुसार 'जब तक सायुज्य न हो तब तक जितने जन्म और मृत्यु आये उन सब से मुझे मुक्त करो ऐसा अर्थ है । ३ 'त्रिपुरातापिन्युपनिषत्' अनुसार अथ कस्मादुच्यते मामृतादिति । अमृतत्वं प्राप्नोत्यक्षरं प्राप्नोति स्वयं रुद्रो भवति । (चतुर्थ उपनिषद् - ९) तान्त्रिक दृष्टि से अमृत को त्रिविध रुप से समज सकते है। - चन्द्र वाम नाडी - इडा के मार्ग से संचरण करता हुआ शरीर को अमृत से सिंचित करता है। सूर्य दक्षिण नाडी - पिंगला के मार्ग के अमृत को शोषित करता है । जब सुषुम्णा मार्ग पर कुंडलिनी आगे बढ़कर चन्द्र मण्डल को दंश देती है तब सहस्रार के ज्योत्स्नामय लोक के अमृत की अनुभूति होती है । इस अमृत भी तीन प्रकार का है (१) इडा मार्ग पर चन्द्र के संचरण से जीवन को पोषण मिलता है। (२) मृत्यु की पीडा या यातना का अनुभव न हो इस तरह देहमुक्ति है । परीक्षित राजा का यहाँ उदाहरण है । (३) सहस्रार 744
SR No.007005
Book TitleWorld of Philosophy
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChristopher Key Chapple, Intaj Malek, Dilip Charan, Sunanda Shastri, Prashant Dave
PublisherShanti Prakashan
Publication Year2011
Total Pages1002
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size30 MB
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