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Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
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Kisalaakaracaranā......
(p. 322) किसलअ-कर-चरणा वि हु कुवलअ-णअणा मिअंकवअणा वि । अहह णवचंपअंगी तह वि (हु)तावेइ अच्छरिअं ॥ (किसलय-कर-चरणाऽपि खलु कुवलय-नयना मृगाङ्कवदनाऽपि । अहह नव-चम्पकाङ्गी तथापि खलु तापयत्याश्चर्यम् ।)
-Karpūramañjari II. 42
(p. 323)
59) Sarasā vi sūsai ccia.......
सरसा वि सूसइ च्चिअ जाणइ दुक्खाइँ मुद्ध-हिअआ वि । रत्ता वि पंडुर च्चिअ जाआ वरई तुह विओए ॥ (सरसापि शुष्यत्येव जानाति दुःखानि मुग्धहृदयापि । रक्तापि पाण्डुरैव जाता वराकी तव वियोगे ॥)
-GS VI. 33
60) Kampai mahindaselo.....
(p. 324) कंपइ महिंदसेलो हरिसंखोहेण दलइ मेइणि-वेढं। सइ दुद्दिण-तण्णाओ णवर ण उद्धाइ मलअ-वण-कुसुम-रओ ॥ (कम्पते महेन्द्रशैलो हरिसंक्षोभेण दलति मेदिनी-वेष्टम् (पीठम्)। सदा दुर्दिना केवलं नोद्धावति मलय-वन-कुसुम-रजः ॥)
-Setu VI. 22
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(p. 330)
Diahe diahe susai...... दिअहे दिअहे सूसइ संकेअअ-भंग-वडिआसंका। आवंडुरोणअमुही कलमेण समं कलमगोवी ॥ (दिवसे दिवसे शुष्यति संकेतक-भङ्ग-वर्धिताशङ्का । आपाण्डुरावनतमुखी कलमेन समं कलम-गोपी ॥)
-GS VII. 91
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62) Dhirena nisāāmā......
(p. 330) धीरेण णिसाआमा हिअएण समं अणिट्ठिआ उवएसा। . उच्छाहेण सह भुआ बाहेण समं गलंति से उल्लावा ॥ (धैर्येण निशायामा हृदयेन सममनिष्ठिता उपदेशाः । उत्साहेन सह भुजौ बाष्पेण समं गलन्ति तस्योल्लापाः ॥)
-Setuv.7