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________________ Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics 593 58) Kisalaakaracaranā...... (p. 322) किसलअ-कर-चरणा वि हु कुवलअ-णअणा मिअंकवअणा वि । अहह णवचंपअंगी तह वि (हु)तावेइ अच्छरिअं ॥ (किसलय-कर-चरणाऽपि खलु कुवलय-नयना मृगाङ्कवदनाऽपि । अहह नव-चम्पकाङ्गी तथापि खलु तापयत्याश्चर्यम् ।) -Karpūramañjari II. 42 (p. 323) 59) Sarasā vi sūsai ccia....... सरसा वि सूसइ च्चिअ जाणइ दुक्खाइँ मुद्ध-हिअआ वि । रत्ता वि पंडुर च्चिअ जाआ वरई तुह विओए ॥ (सरसापि शुष्यत्येव जानाति दुःखानि मुग्धहृदयापि । रक्तापि पाण्डुरैव जाता वराकी तव वियोगे ॥) -GS VI. 33 60) Kampai mahindaselo..... (p. 324) कंपइ महिंदसेलो हरिसंखोहेण दलइ मेइणि-वेढं। सइ दुद्दिण-तण्णाओ णवर ण उद्धाइ मलअ-वण-कुसुम-रओ ॥ (कम्पते महेन्द्रशैलो हरिसंक्षोभेण दलति मेदिनी-वेष्टम् (पीठम्)। सदा दुर्दिना केवलं नोद्धावति मलय-वन-कुसुम-रजः ॥) -Setu VI. 22 61) (p. 330) Diahe diahe susai...... दिअहे दिअहे सूसइ संकेअअ-भंग-वडिआसंका। आवंडुरोणअमुही कलमेण समं कलमगोवी ॥ (दिवसे दिवसे शुष्यति संकेतक-भङ्ग-वर्धिताशङ्का । आपाण्डुरावनतमुखी कलमेन समं कलम-गोपी ॥) -GS VII. 91 . 62) Dhirena nisāāmā...... (p. 330) धीरेण णिसाआमा हिअएण समं अणिट्ठिआ उवएसा। . उच्छाहेण सह भुआ बाहेण समं गलंति से उल्लावा ॥ (धैर्येण निशायामा हृदयेन सममनिष्ठिता उपदेशाः । उत्साहेन सह भुजौ बाष्पेण समं गलन्ति तस्योल्लापाः ॥) -Setuv.7
SR No.006959
Book TitlePrakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV M Kulkarni
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1988
Total Pages790
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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