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________________ 551 Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics 25) ......Apahnutih...... (p. 41 v. 134) सोहइ चल-मउलि-कुसुमो (? सुमो) भमंत-भसल-च्छलेण अप्पाणं । महुमहण-दसण-विलीअमाण-दुरिअं पआसेतो ॥ (शोभते चल-मौलि-कुसुमो (? सुमो) भ्रमभ्रमर-च्छलेनात्मानम् । मधु-मथन-दर्शन-विलीयमान-दुरितं प्रकाशयन् ॥) । 26) ......Apahnutih...... ___ (p. 41 v. 135) उल्लोल्ल-करअ- रअण-क्खएहिं तुह लोअणेसु मह दिणं । रत्तंसुअ- प्पसा कोवेण पुणो इमे ण अक्कमिआ ॥ (आर्द्र-करज-रदन-क्षतैस्तव लोचनयो मम दत्तः । रक्तांशुक-प्रसादः कोपेन पुनरिमे नाक्रान्ते ॥) -First cited in KP IV 70 (p. 144). Cf GS (W) 971. 27) ......Apahnutih...... (p. 42 v. 136 विहलंखलं तुमं सहि ठूण कुडेण तरलतर-दिढ़ि। वारफंसमिसेण अ अप्पा गरुओ त्ति पाडिअ विभिण्णो ॥ (विहूवलाङगां/विशृङ्खलां त्वां सखि दृष्ट्वा कुटेन तरलतरदृष्टिम् । द्वार-स्पर्श-मिण चात्मा गुरुक इति पातयित्वा विभिन्नः॥) -First cited in KP IV. 91 GS (W) 880 ......Apahnutih...... (p. 43 v. 140 जोव्वणवुड्ढी कमला लडहज्जण (विअड्ड-जण)परिअओ पिआ रत्ता। णव-महु-समओ एसो सग्गो अक्खाणि अण्णा ॥ (यौवन-वृद्धिः कमला मनोहरजन-(? विदग्ध-जन-)परिचयः प्रिया रक्ता। नव-मधु-समय एष स्वर्ग आख्यानिका अन्या ॥) 29) ......Utpreksa...... __(p. 48 v. 153 परिरंभ-विसारि-स्थण भण(? मण = मणे) कामेसुपडणसंकाए । रइ-कलहे जा पुरओ धरेत्ति (? धरेइ) फर-फलअजुअलं व ॥ (परिरम्भ-विसारि-स्तनका ( = स्तनी) कामेषु-पतन-शङ्कया। रति-कलहे या पुरतो धरति फर-फलक-युगलमिव ॥) 30) ......Utpreksa...... ___(p. 50 v. 157) बलाआ (? बलआ)-मेहनिहेणं नहम्मि निव्वाणमहिलसिआ। मुत्ता-कलाव-कथा गिम्हम्मि कालवीरेण ॥ (बलाहक-मेघ-निभेन नभसि निर्वाणमभिलषिता । मुक्ता-कलाप-कन्था ग्रीष्मे काल-वीरेण ॥)
SR No.006959
Book TitlePrakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV M Kulkarni
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1988
Total Pages790
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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