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________________ 376 Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics 179) Sahasā mā sahijiav...... (p. 591, v. 54) सहसा मा साहिज्जउ पिआगमो तीअ ( = तीएं) विरह-किसिआए। अच्चंत-पहरिसेण वि जा अ मुआ सा मुआ च्चेअ॥ (सहसा मा कथ्यतां प्रियागमस्तस्यै विरह-कृशितायै । अत्यन्त-प्रहर्षेणापि या मृता सा मृतैव ।) 180) Gharini-ghanatthana-pellana ..... (p. 593, :. 62) घरिणि-घण-त्थण-पेल्लण-सुहेल्लि-पडिअस्स होंत-पहिअस्स । अवसउणंगारअ-वार-विट्ठि-दिअहा सुहार्वेति ।। (गृहिणी-घन-स्तन-प्रेरण-सुख-पतितस्य भबिष्यत्पथिकस्य । अपशकुनाङ्गारक-वार-विष्टि-दिवसाः सुखयन्ति ॥) -GS III. 61. 181) Niddalasa-porighummira...... (p. 594, v. 63) णिद्दालस-परिघुम्मिर-तंस-वलंतद्ध-तारआलोआ । कामस्स वि दुव्विसहा दिद्विणिवाआ ससिमुहीए॥ (निद्रालस-परिघूर्णनशील-तिर्यग्वलदर्ध-तारकालोकाः । कामस्यापि दुर्विषहा दृष्टि-निपाताः शशिमुख्याः ॥) -GS II. 48 182) Osuai dinna-padivakkha...... (p. 594, v. 64) ओसुअइ (अह सुअइ) दिण्ण-पडिवक्ख-वेअणं (-वेअणा)पसिढिलेहि अंगेहि। णिव्वत्तिअ-सुरअ-रसाणुबंध-सुह-णिन्भरं सोण्हा (वहुआ)॥ (अवस्वपिति (असौ स्वपिति) दत्त-प्रतिपक्ष-वेदनं (-वेदना)प्रशिथिलैरङगैः । निर्वतित-सुरत-रसानुबन्ध-सुख-निर्भरं स्नुषा (वधूः)॥ ) -Cf. GS (W) 717 183) Ramdhanakamma-niunie...... __ (p. 602, v. 91) रंधण-कम्म-णिउणिए मा जूरसु रत्त-पाडल-सुअंधं । मुह-मारुअं पिअंतो धूमाइ सिही ण पज्जलइ॥ (रन्धन-कर्म-निपुणिके मा खिद्यस्व रक्त-पाटल-सुगन्धम् सुगन्धिम् । मुख-मारुतं पिबन् धूमायते शिखी न प्रज्वलति ॥) -GS I. 14
SR No.006959
Book TitlePrakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV M Kulkarni
PublisherB L Institute of Indology
Publication Year1988
Total Pages790
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size11 MB
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