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Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
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1477)
Kuvalaadalauttar......
(p. 1185)
For this Apabhramsa passage vide Appendix I. 1478) Tavasuleaadharāhara (?)......
(p. 1186) ताव अ सुवेल-धराहर-कड-तडंतरिअ-ससि-अर-परिग्गहिआ। दोसइ थोअ-थिआ अंसमारहंति व्व णहअलं पुन्वदिसा ॥ (तावच्च सुवेल-धराधर-कट-तटान्तरित-शशि-कर-परिगृहीता।
दृश्यते स्तोक-स्थितां समारोहन्तीव नभस्तलं पूर्वदिशा ॥) 1479) Viddumavalaaddhanihāra.....
(p. 1186) विददुम-वलअद्ध-णिहार-हिरोग्गआ अवरा णु दाढा सुहआ। सोहइ असोअ-णिम्मिअ-वम्मह-चाव-तणुई मिअंकस्स कला ॥ (विद्रुम-वलयार्ध-नीहार-हीरोग्दतापरा नु दंष्ट्रा सुभगा।
शोभते ऽ शोक-निमित-मन्मथ-चाप-तन्वी मृगाङ्कस्य कला ॥) 1480) Johnarasacunnaiam.. ...
(p. 1186) जोहा-रस-चुप्णइअं कर-विच्छूढ-तिमिराइअ-परिक्खेवं । रइ अ-मअ-पत्तलेहं मुहं व रअणीऍ दाविरं ससि-बिं ॥ (ज्योत्स्ना-रस-चूणितं कर-विक्षिप्त-तिमिरायित-परिक्षेपम् ।
रचित-मद-पत्र लेखं मुखमिव रजन्या दर्शितं शशि-बिम्बम् ।) 1481) Padhamam vidduma-ampo (?)......
(p. 1186) पडम विदुम-अप्पो पच्छा होइ सविसेस-धवल-च्छाओ । मअ-पल्लविअ-विलासिणि-मुह-पडिमामुक्क-दप्पणो व्व मिअंको ॥ (प्रथमं विद्रुम-कल्पः पश्चाद् भवति सविशेष-धवल-च्छायः ।
मद-पल्लवित-विलासिनी-मुख-प्रतिमामुक्त-दर्पण इव मृगाङ्कः ॥) 1482) Camdāavammi jaai......
(p. 1186)
This verse / gàtha is corrupt and therefore, obscure.
1483) Bhinnatamaduddinaim......
(p. 1186) भिष्ण-तम-दुहिणाई विडवंतर-विरल-पडिअ-चंद-कराई। थोअ-सुहालोआई पअडंति व मुद्ध-पल्लवाइं वणाई ॥ (भिन्न-तमो-दुदिनानि विटपान्तर-विरल-पतित-चन्द्र-कराणि । स्तोक-सुखालोकानि प्रकटयन्त इव मुग्ध-पल्लवानि वनानि ॥)
-Setu X. 44