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Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
820) Paumappahaddiamkam (?)......
___(p. 890) पउमप्पहं दिअं कं मअच्छि पुडरीअ-(? पुंडरिअ-) पुंडरोएण । कर-संधिएण मग्गसि पुंडरिअ-समाउले रणे ॥ (पद्म-प्रभं द्विजं कं मृगाक्षि पुण्डरीक-पुण्डरीकेण ।
कर-संहितेन मार्गयसि पुण्डरीक-समाकुलेऽरण्ये ॥) 821) Kalaati suoravaheri (?)......
(p. 891) उवरि दर-दिट्ठ-खण्णुअ-णिलीण-पारावआण विरुएहिं । णित्थणइ जाअ-विअणं सूलाहिण्णं व देवउलं ॥ (उपरीषदृष्ट-स्थाणुक-निलीन-पारावतानां विरुतः । निस्तनति जात-वेदनं शूलाभिन्नमिव देवकुलम् ॥)
-Cf.GSI.64
Note: The opening words" kalaati suoravaheri dinna" of the gatha as printed in the text make no sense. The rest of the passage nearly agrees with the text of the GS I. 64..
822) Paleiacchabhallam (?)......
(p. 891) फालेइ अच्छभल्लं व उअह कुग्गाम-देउल-हारे । हेमंतआल-पहिओ विज्झाअंतं पलालग्गि । (पाटयत्यच्छभल्लमिव पश्यत कुग्राम-देवकुल-द्वारे । हेमन्त-काल-पथिको विध्यायमानं (वीध्यमान, निर्वाप्यमाणं) पलालाग्निम् ।)
-GS II.9
823)
Coriaraasaddalui......
(p. 892)
This gatha (GS V. 15) is already cited earlier on p. 633 and p. 798. Vide S. No. (344) supra.
824) Haliamua muhasasikam......
(p. 892) हलिअ-सुआ-मुह-ससि-कंति-पहअ-तिमिरम्मि इह हअग्गामे ।
ओं मामि कहं वसिज्जइ संकेअअ-भंग-दूमिआसाहि ॥ (हालिक-सुता-मुख-शशि-कान्ति-प्रहत-तिमिरे इह हतग्रामे । हे सखि कथमुष्यते सङ्केतक ( = सङ्केत)-भङग-दूनिताशाभिः ।।)