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Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
565) Ajja mae gamtavvam......
(p. 784)
This gātā (GS III. 49 ) is already cited earlier on p. 637. Vide S. No. (388) supra.
566) Balaaa re vamcijjasi......
(p. 785) बालअ रे वंचिज्जसि घोलिर-महु-पाण-लद्ध-पसराओ। पुप्फवई-मुह-चुंबणसहास (अथवा, सरहस-) कंठग्गह-सुहाओ ॥ (बालक रे वञ्च्यसे लोलनशील-मधु-पान-लब्ध प्रसरात् ।
पुष्पवती-मुख-चुम्बन-सहास-(अथवा, सरभस-) कण्ठग्रह-सुखात् ॥) 567) Visambha-vaddhia-rasam......
(p. 785) वीसंभ-वड्ढिअ-रसं अइराअ-क्ख लिअ-सेस-संठिअ-रसणं । विअलिअ-मअ-पत्तटुं पच्चूस-रअं पओस-दूरब्भहिरं ॥ (विश्रम्भ-वधित-रसम् अतिराग-स्खलित-शेष-संस्थित-रशनम्। विगलित-मद-निपुणं प्रत्यूष-रतं प्रदोष-दूराभ्यधिकम् ॥)
-Setu XII. 13
568)
Humshumide bhanasu puno.....
(p. 785)
This gātha is already cited earlier on p. 632. Vide S. No. (338) supra.
569)
(p. 785)
Dadha-mudhabaddha-ganthim...... दढ-मूल-बद्ध-गठि व्व मोइआ कहवि तेण मे बाहू। अम्हेहि वि तस्स उरें खत्त व्व समक्खआ थणआ॥ (दृढ-मूल-बद्ध-ग्रन्थिरिव मोचितौ कथपि तेन मे बाहू। अस्माभिरपि तस्योरसि मग्नाविव समुत्खातौ स्तनौ ॥)
।
-GS III.6
570) Ki- - - -kkhara disikkhia (?) . ...
(p. 785) कालक्खर-दूसिक्खिअ (अथवा, दुस्सिक्खिअ-), वालअ रे एहि लग्ग कंठम्मि । दोण्ह वि णरअ-णिवासो समअं जइ होइ ता होउ ।। (कालाक्षर-दुःशिक्षित बालक रे एहि लग कण्ठे। द्वयोरपि नरक-निवासः समकं = समं) यदि भवति तद् भवतु ॥)
-Cf. GS (W) 878
Aprastut:
This gātha is cited in SK (V. v. 112, p. 471 ) to illustrate a variety of Prasamsat.