________________
Prakrit Verses in Sanskrit Works on Poetics
95
(p. 621)
247) Piasamharanapalotthamta.......
पिअ-संभरण-पलोटुंत-वाह-धारा-णिवाअ-भीआए। दिज्जइ वंकग्गीवाए दीवओ पहिअ-जाआए ॥ (प्रिय-संस्मरण-प्रलुठद्-बाष्प-धारा-निपात भीतया । दीयते वक्र-ग्रीवया दीपकः पथिक-जायया ।)
Note: This gāthā is cited in SK (V. v. 204, p. 630 ) as well.
-GS III. 22
248) Gharinie mahānasa-kamma......
(p. 621)
This gāthā is already treated of. Vide S. No. (166) supra.
249)
((p.621)
Kassa karo bahupurna...... कस्स करो बहुपुण्णप्फलेक्कतरुणो तुहं विसम्मिहइ । थण-परिणाहे वम्मह-णिहाण-कलसे व्व पारोहो ॥ (कस्य करो बहुपुण्यफलैकतरोस्तव विश्रमिष्यति । स्तन-परिणाहे मन्मथ-निधान-कलश इव प्ररोहः ॥)
-GS VI.75
. This gāthā is cited in SK (V. v. 385, p. 686) as an example of anidha kumari.
250) Vanasia pie ka kuvia (?).....
(p. 621) 'पसिअ पिए' 'का कुविआ' 'सुअणु तुमं' परअणम्मि को कोवो।' 'को हु परो' 'णाह तुमं' कीस अप्पुण्णाण मे सत्ती॥ (प्रसीद प्रिये, का कुपिता, सुतनु त्वं, पर-जने कः कोपः । कः खलु परो, नाथ त्वं, किमित्यपुण्यानां मे शक्तिः ॥)
-GS IV. 84
251)
Dullaha-jalaliurao......
(p. 621)
This gātha is already treated of. Vide S. No. (207) supra.
(p. 621)
252) Didhamarinudūmiae....
दिढ-मण्णु-दूमिआएँ वि गहिओ दइअम्मि पेच्छह इमाए।
ओसरइ वालुआमुट्ठिउ व्व माणो सुरसुंरतो ॥ (दृढ-मन्यु-दूनयापि गृहीतो दयिते पश्यतानया। अपसरति वालुकामुष्टिरिव मानः सुरसुरायमाणः ।।)
-GSI.74