SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 55
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सुवर्ण रौप्य सिधि शल निलंग-तीप्रसंग-मृतसप्तगुण-गोत्तीर्ण (ण) । एतावत् श्वेत(विधि)दर्शिता ॥ अधुना पीतविधिमाह ॥ महावीरं-म०-हेममक्षाक, हा-हाटकं, वी०-कृष्णाभ्रक, ए०-रसमित्यर्थः । । शेषा औषधयः(ध्यः) समाना ॥१॥ - सुकू०-नाइणि, धीर-नाइ, 'सोमा-सोमवल्ली, त्रयं । रत्त-रक्तदुग्धिका कसिण-बह(हु)फली-काचणिका, पडुरी-देवदाल, 'सि'-शंगबेरक, पंचक(रि)-लघुरिगणी, निकेया-केतकी सीया-5लांगलिका,कुसगह-अहिखर-बीजाणि, भीरु-संकोइणिलज्जूल, जलमांडिका-जल च, 'तादृशी नभमंडपिका, थल०-अंगवती ॥२॥ इदानीं रोचनक्रामणा उद्घाटनविधिमाह ॥ पंकय-गगण, गयंद -मत्तनाग, चंद-तारं हेम' या । त्र(त्रि)यमपि रोचनमित्यर्थः, तथा कामणं, तर्थोद्घाटनमितार्थः । "यदुक्त :तारहि तारु, सुवण्णस्स । सुवणि(ण्णि)हि-सूयोरेव नहु बज्जुइ, अन्नि कांमणु । वेहुग्घाखणु नाई दबीकरणु होइरसराइ ॥३॥ एवं कृत्वा जिणिदो, अच्छरगण इति-अम्लवर्गः-घरगण इति क्षारवर्गः, गुण-संघ इति-समुदायेन एभिः संथुउ (ओ)संस्तु त्य-स्तंभितेत्यर्थः । भगवान सेंद्र - पूण्यो भवेति । कर्मकृद् भवति ।। . पालितय मइ(य)-महिओ-महिलः परिकर्मितः, दिशतु, क्षय सर्वदुरिता. नामित्यर्थः ॥ - अणसेइओन्तरलो न निम्मलो होइ । सद्दणा रहिओ साअण-रहिओ पसरें।। कामिओ नेअ कमइ लोहेसु ॥४॥ 1. सोमा, 'ब' प्रत दो बार उल्लिखित है । 2. रक्त, ब.। 3. लागलिका, अ। 4. तादशी, ब। 5. थल, ब । ध, अ। 6. गगणां, ब । 7. हेत, ब । 8. अन्ने,ब। १. ताइ, ब। 10. स्तभितेत्यर्थ, ब। 11. मिम्मलो ब। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006907
Book TitleSuvarna Raupya Siddhi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ C Sikdar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages434
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy