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________________ . नया अध्याय एक भाग वंग दोइ भाग पारा । ए दूहुँ विचाले नांग २ स'चारा ॥ लाखे लोद्रे धोवो काली । नाथ बोले एता सदा दिवाली ॥१९॥ गंधकेन हतं शुल्वं दरदेन समं कुरु । मातुलिंगरसमयं नागपत्राणि लेपयेत् ।। त्रिपुटैर्धियते नागं सिंदूरगणसंन्निभं षोड़शां[षां]शं वेधयेच्च तारमायाति कांचनम् ॥२०-२१॥ बूढो बांभण जो पावीजे । वाटी कुटी' भूको कीजे ॥ खरनरमूत्रे भावन दीजे । वंग नवंगी पृथ्वि कीजे ॥२२॥ तार त्रिलोचन-चूनड़ी, भावो भानुरसेन ।। ए नागार्जुन की चूनड़ी, नहु फीटे वरिसेण ॥२३।। खपरा भारो लुणे । तो राज करो चिहु खुणे' ।। नाथ कहे मनमें नाशे म करि) विचारा । दुख दारिद्रच[5] क जाई सारा ॥२४॥ अंतर्दू मविपाचितं गंधकराजराजितं शुभम् । भवति हि सहस्रवेधी तारे ताने भुजंगे वा ॥२५॥ खरमटहासमतुल्य वनीक्षीरेण भावित बहुसो । अग्नी-ऊपरि' पक्क, हवई कोंदुज्जलं' सच्चम् ॥२६॥ दुइ आर दुइ तार । दुइ10 साजी दुइ टंकण खार । स्वेतकाच उपरि तले दीजे । महियलि11 बेठा19 राज करीजे ॥२७॥ घणगंठी अरु बहुफली, कूपतलावे वास । एकलड़ी रस भेलवें, करि दरिद्रह नास* ॥२८॥ 1. काला, ब । 2. वेधयेत्तारमायाति, ब । 3. बूटो, ब । 4. कुटी, ब, कुटि, अ। 5. नारे । 6. अग्नी , अ। 7. उपरी, अं। 8. हवइ, अ। 9. कोंदुझल, बे। 10. दुई, ब । 11. महियाल, अ। 12. बेटा, अ। 13. भुप, ब । । 14 - । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006907
Book TitleSuvarna Raupya Siddhi Shastra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJ C Sikdar
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages434
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size7 MB
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