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अब यह सिद्ध हो चुका है कि जल भी एक प्रकार का जीव होता है ( संदर्भ i, ii) । कुछ परिस्थितियों में यह निर्जीव हो सकता है। परिस्थितियाँ बदल देने से वह फिर सजीव (सचित्त) व प्राणवान बन सकता है। उसकी संवेदनाएँ लौट आती हैं । अतः शिष्ट व सदाचारी मानव जाति का यह नैतिक व नैसर्गिक कर्त्तव्य बनता है कि वह पानी के प्रति करूणा और अनुकम्पा का दृष्टिकोण जागृत करे। अपने बच्चों में करूणा और अनुकम्पा का दृष्टिकोण विकसित करने के लिए सक्रियता के साथ शिक्षा के पाठ्यक्रम में समुचित सुधार कर, जल अपव्ययता / दुरूपयोग को महापाप का दर्जा दिया जाय। हर परिवार, जागरूक और जिम्मेदार नागरिक बन कर, जल पुनर्शोधन की व्यवस्था को अपनाये, क्योंकि समस्त चराचर का मूल आधार जल ही है। तथ्यों व आकंडों को वैज्ञानिकता के साथ परोसा जाय । हमारी जीवन शैली में, अपने पर्यावरण व संसाधनों के बचाव व संरक्षण की महत्ता को घर
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'जल के सदुपयोग का व्यावहारिक दर्शन"
व स्कूलों के कार्यक्रमों ( 22 मार्च अंतर्राष्ट्रीय जल - दिवस आदि) द्वारा समझा कर,
उन्हें जिम्मेदार नागरिक बनाये ।
A) पानी के अपव्यय और दुरूपयोग के कुछ महत्त्वपूर्ण तथ्यः
1. भारत में 900 शहरों का 70% गंदा पानी व मलमूत्र प्रमुख नदियों में, बिना शोधन (treatment) के डाला जा रहा है।
2.
जर, जोरू और जमीन के साथ-साथ जल पर भी झगड़े होते नजर आते हैं। 3. मुम्बई में वाहन धोने में ही 50 लाख लीटर पानी प्रति दिन खर्च होता है।
4.
5.
6.
बड़े शहरों में पाईप लाइन के वाल्व की खराबी के कारण 10 से 40% पानी बेकार बह जाता है।
इजराइल में औसतन 10 cm वर्षा होती है। इससे इतना अनाज पैदा कर लेता है कि उसका निर्यात कर सकता है । भारत में औसतन 50 cm वर्षा होती है, लेकिन हमेशा अनाज की कमी रहती हैं।
भारत में प्रति व्यक्ति पानी की मांग 85 लीटर है, जो 2025 तक 125 लीटर हो जायेगी । उस समय भारत की आबादी 1 अरब 38 करोड़ हो जायेगी । इससे पानी की मांग में कुल 7900 करोड़ लीटर की बढोतरी हो जाएगी। अभी उपलब्धता 307 लीटर है, जो घटकर 2025 तक आधे से भी कम हो जायेगी ।
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