________________
ii) मितव्ययताः
जैसे घी का उपयोग करते वक्त यह ध्यान रखा जाता है कि एक बूंद भी व्यर्थ नीचे नहीं गिरे या फालतू बहकर न चला जाय, वैसी ही मानसिकता जल की बूंद के प्रति भी समाज में विकसित की जाये। खास कर स्कूली बच्चों व कृषि तथा उद्योग में लगे व्यक्तियों को इसका महत्व, विशेष
प्रशिक्षण द्वारा, समझाया जाये। iii) कुछ साधारण विवेक के गुर : 1 पानी से धोते वक्त (शरीर, बर्तन व वस्तुओं) बहते पानी के बजाय मग या
हाथ के चुल्लु का उपयोग करें तथा प्रत्येक बार पानी की मात्रा कम से कम
बहता पानी (जैसे सिंचाई आदि) : नल या पाइप का व्यास (छोटे छेद वाला) कम से कम रखें । तथा नल को भी कम से कम खोलें। फव्वारे या ड्रिप विधियों से खेती में बहुत पानी बचाया जा सकता है। जल संरक्षण में पुनरूपयोग व्यवस्था का बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान है। ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसका उपयोग करने के लिए, प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। इससे पर्यावरण संरक्षण में सहायता तो मिलेगी ही, साथ ही साथ में, निकट भविष्य में आने वाली जल समस्या से भी निजात मिल सकेगी। उपरोक्त शोध के आलोक में हमें गंभीरता से सोचना चाहिए कि अपकायिक जीवों के प्रति हम समाज में किस प्रकार करूणा का भाव पैदा कर सकें। नहीं तो हमारी उदासीनता या लापरवाही से कहीं आने वाली पीढ़ी ही, पानी की कमी के कारण, पृथ्वी से विलुप्त होने के कगार पर न आ जायें।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org