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iv) निर्जीव पानी पीने के फायदे: 1 10 लीटर पानी में 50g गोबर की राख घोलने से अच्छा धोवन बन जाता
है। 24 मिनट बाद निथार और छान कर उस अचित्त पानी को पीने के काम में लिया जा सकता है। राख से अभिभूत पानी की P" संख्या 7 से ज्यादा (यानि क्षारीय होना) होती है। इससे शरीर में जमा अम्लीय कचरा साफ करने में मदद मिलती है। राख से उपचारित पानी ज्यादा शुद्ध और पीने लायक पाया गया। (जामनगर में गुजरात के वाटर सप्लाई और सिवरेज बोर्ड द्वारा जारी टेस्ट
रिपोर्ट, 24 अप्रैल, 2010) __ बैंगलोर के स्कूलों में किये गये परीक्षणों में भी राख घुला पानी (कोलोइड), पूर्व के पानी से ज्यादा साफ और बैक्टेरिया विहीन पाया गया। ऐसा पानी पीने से शरीर में मूलकों की मात्रा कम हो जाती है। यानि यह डीआक्सीडेंट की तरह काम करता है। चूंकि यह क्षारीय जल होता है, इसलिए ऐसिडिटि की शिकायत (अम्लीयता) कम हो जाती है। अतः निथार और छान कर घर में ऐसा ही पानी पीने का इन्तजाम करना चाहिए। अहिंसक जीवन शैली और पर्यावरण संरक्षणः उपरोक्त आभामंडलीय फोटोग्राफी से यह पक्का सिद्ध हो गया है कि पानी सचित्त/अचित्त रूप में एक जलकायिक जीव है। आज हम इस स्थिति में हैं कि यंत्रों द्वारा यह पहचान सकते हैं कि कोई पानी सचित्त अवस्था में है या निर्जीव अवस्था में है । अतः विवेकशील मनुष्य का यह कर्तव्य बनता है कि उसके साथ सम्मान की दृष्टि रखें। हमारे अहिंसक जीवन दर्शन ‘परस्परोपग्रहो जीवानाम्' का तकाजा है कि इसके जीवन की रक्षा करने का भाव रखकर, हम पर्यावरण संरक्षण में अपना सहयोग करें। जीव-रक्षा का सीधा-साधा मतलब है कि हम अपने दैनिक जीवन में करूणापूर्वक, पानी का दुरूपयोग नहीं होने दें। हर समय जागरूक रहकर, इसके मितव्ययी बने । अपने विवेक द्वारा इसका अपव्यय बिल्कुल न होने दें। इसके अल्पीकरण के संकल्पों पर विशेष जागरूकता अभियान चलायें।
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