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________________ 3 जल जीव होने का प्रमाण : a) होम्योपैथी की क्रियाएँ और प्रभाव :इस पद्धति में दवा का मूल अर्क, अपने विभिन्न प्रकम्पन गुण और ऊर्जा, जल कोशिकाओं के नेटवर्क पर ट्रान्सफर (अंतरण) करके, बाहर निकल आता है। यही जीवित कोषाणु मनुष्य के शरीर में जाकर, वहाँ के कोषाणुओं के लिए उत्प्रेरक का काम करता है। इस प्रक्रिया से जीन्स की संकेत नियमावली और निर्देश बदले जा सकते हैं। जीवित नेनो-टयूब की बनावट इतनी मजबूत होती है कि संस्कारित होने के बाद, ये ब्राउनियन-मोशन से अप्रभावित रहती हैं। b) पानी को निर्जीव बनाने की विधियाँ और काल-मर्यादा साधारण पीने का पानी या तो उबालने से या उसमें राख जैसे विजातीय तत्त्व घोलने से अचित बन जाता है। उबालने से पानी का शरीर टूट कर बिखर जाता है तथा उसमें घुली हुई हवा भी बाहर निकल जाती है। राख आदि के घोलने से पानी के शरीर के छिद्र बंद हो जाते हैं, जिससे वह श्वांस नहीं ले पाने के कारण निर्जीव/अचित्त बन जाता है। पानी जब ठंडा हो जाता है, तो उसमें हवा फिर से घुल जाती है तथा उसका शरीर भी वापिस जुड़कर उपयुक्त योनि रूप बन जाता है। मौसम के अनुसार उबाला हुआ पानी कुछ घंटों बाद फिर से सचित्त बन सकता है। यानि निर्जीव अवस्था में बने रहने की एक न्यूनत्तम समय सीमा होती है। यह 'परिकल्पना', बाद के प्रयोगों द्वारा सिद्ध हो चुकी है। c) आभामंडलीय फोटोग्राफी में सजीव/निर्जीव अवस्था का पानीः मुम्बई और अहमदाबाद में किये गये हमारे परीक्षणों में यह भी देखा गया है कि पानी को उबालने से या उसमें राख पाउडर घोलने से (धोवन पानी) पानी का आभामंडल बदल जाता है। आभामंडल के फोटो खींचने से (किर्लियन फोटोग्राफी) जीवित और निर्जीव पानी में स्पष्ट फर्क नजर आता है। आश्चर्य तब होता है, जब 7-10 घंटों के बाद, निर्जीव (उबाला पानी) पानी का आभामंडल, फिर से सजीव पानी की तरह का आभामंडल बन जाता है। यानि जैन शास्त्रों में दी गई पानी की काल मर्यादा सही सिद्ध होती है। d) पिछले कुछ वर्षों में होलैंड व जापान के वैज्ञानिकों ने आधुनिक प्रयोगों से यह निष्कर्ष निकाला है कि सचित्त पानी पर ध्वनि तरंगों का तथा हमारी भावनाओं का, उसकी संरचना व दिखाव-बनाव पर असर पड़ता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006761
Book TitleScience of Dhovana Water
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeoraj Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2012
Total Pages268
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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