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________________ षट्भुजी द्विआयामी ढाँचा बनाने में सक्षम है। इसके अलावा पानी में घुली हुई हवा भी ऑक्सीजन मूलक (आयन) के रूप में पाई जाती है। इन मूलकों की मौजूदगी में, पानी का पंजभुजी और षट्भुजी रवा जुड़कर एक त्रिआयामी चित्र : जल-जीव की काया ढाँचा बनाता है, जो कमरे के तापक्रम पर भी स्थायी रहता है। यह इकाई रूप आकार अपनी केन्द्रित ऊर्जा से सहजातिक अणुओं को आकर्षित करके, 18-60 इकाइयों का एक जालीनुमा, बेलनाकार (बकीबॉल जैसा) कोषाणु बनाता है। इनकी अपनी जुड़ाव की शक्ति काफी मजबूत होती है। यह पाइपनुमा आकार करीब 0.1 म्यू (काफी सूक्ष्म) लम्बा होता है। यह पाइपनुमा नेनो ट्यूब उबालने पर टूट जाती है। इस आकार में, इसकी सतही ऊर्जा अल्पतम होती है। (संलग्न चित्र) 2 जीवित रहने की प्रक्रिया और परिकल्पनाः यह ढाँचा / कोषाणु अपनी विद्युत ऊर्जा से लगातार समाविष्ट रहता है। फिर सोखी हुई हवा (ऑक्सीजन) के आयन/मूलक, जो इस ट्यूब में प्रवेश कर दूसरी तरफ से बाहर निकल जाते हैं। इनका संचलन/परिवहन इतना आसानी से होता है, जैसे कि वे भारहीन फोटोन की तरह कण हों। अपनी गति के द्वारा वे एक अलग प्रकार का विद्युत-ऊर्जा क्षेत्र (होल्स क्षेत्र) पैदा करते रहते हैं। कोशिका की ऊर्जा, इन मूलकों को एक सक्रिय संतुलन में रखती है। अपने में संचित ऊर्जा को मांग होने पर, यह कोषाणु उसे उपलब्ध कराने में समर्थ होता है। हाल की शोध से, फ्रांस व कोरिया में यह पता लगा है कि इन कोषाणुओं में "स्मृति" भी होती है। कुछ अन्य प्रयोगों से हमने यह भी पाया है कि इन कोशिकाओं को प्रशिक्षित किया जा सकता है तथा बाद में ये अपनी स्मृति को आवश्यकता होने पर काम में ले लेते हैं। यह निष्कर्ष होम्योपैथी के लिए एक बहुत महत्त्व की खोज है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.006761
Book TitleScience of Dhovana Water
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJeoraj Jain
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year2012
Total Pages268
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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