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इंद्रियों से तथा बाह्य उपकरणों से भी अग्राह्य ही रहते हैं। श्वासोच्छवास, कार्मण शरीर, भाषा और मन के पुद्गल स्कंध इसी श्रेणी के होते हैं । ये स्कंध 23 में से पहली 14 प्रकार की पुद्गल वर्गणाओं के ही होते हैं (गोम्मटसार, जीव कांड, भाग - 2) जबकि श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार कुल 26 में से प्रथम 16 वर्गणाओं के स्कंध होते हैं (5 वाँ कर्म ग्रन्थ, गाथा 75-76)।
सूक्ष्म - परिणति के बाद ये स्कंध एक ऐसी अवस्था में रहते हैं, जो आधुनिक युग की " ऊर्जा " की अवस्था के समतुल्य होती है । (संदर्भ 1, 2)
क्रमशः 15 वीं या 17 वीं वर्गणा में स्कंध का घनत्व यानि सूक्ष्म परिणत स्कंध में, परमाणु प्रति इकाई जगह (इकाई जगह के परमाणु) एक ऐसे विशिष्ट स्तर पर पहुँच जाते हैं, जहाँ उनका आपस में शायद एक प्रकार का विशिष्ट बंध हो जाता है। इस बदलाव को परमाणु स्थूल - परिणति कहा जाता है। इससे यह स्कंध बादर बन जाता है। यानि एक ऊर्जा - स्कंध, एक प्रकार के कण- स्कंध में परिवर्तित हो जाता है तथा उसमें भार गुण “गुरू- लघु" स्पर्श प्रकट होता है।
15 वीं या 17 वीं वर्गणा के बाद की वर्गणाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार का स्कन्ध-घनत्व होगा, जिसको "लघु-गुरू" ( हल्का - भारी ) स्पर्श गुण कहा गया है। तथा आपसी बंधन के जोड़ों (गांठों) में भिन्न-भिन्न प्रकार की "मजबूती" का गुण प्रकट होता है, जिसको "मृदु-कठोर” (कोमल - कठोर ) कहा गया है। यह इस विशिष्ट जोड़ के बंधन का लचीलापन या कठोरपना हो सकता है। शायद इसके कारण उस स्कंध में यानि पदार्थ में कोमलता का गुण प्रकट होता है ।
स्थूल - परिणति (संकुचन से जुड़ना) के पश्चात ये पुद्गल - स्कंध चाक्षुक बन जाते हैं तथा उन में भार गुण प्रकट हो जाता है। इन में शुरू के 4 स्पर्श गुण बढ़ कर अब 8 स्पर्श-गुण हो जाते हैं । (दिगम्बर मान्यता के अनुसार पदार्थ में 4 आधारभूत स्पर्शों के साथ 4 और आनुषांगिक स्पर्श गुण विकसित हो जाते हैं। इन आनुषांगिक स्पर्शो की विकास कथा निम्न प्रकार की बताई गई है) । संदर्भ 1, 2 ।
1. पुद्गलों में रूक्ष स्पर्श की बाहुल्यता से लघु (हल्कापन) स्पर्श गुण का विकास होता है। यानि ऋण आवेशों के बाहुल्य (अतिक्रमण) से
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