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हैं, जिससे कि उसमें स्वयं उपरोक्त आठों स्पर्श गुण रहे हुए हैं। वास्तव में ये चार विलोम गुण वाले जोड़े/युग्म होते हैं।
1. स्निग्ध-रूक्ष (चिकना-खुरदरा) यह गुण खुरदरेपन की तुला पर मापा जा सकता है। यह स्पर्श उन पदार्थों में भी पाया जायेगा, जिनके केवल 4 स्पर्श होते हैं, क्योंकि खुरदरापन एक सतह का लक्षण है। बादर/स्थूल पदार्थों में यह गुण उनके विद्युत आवेशों से संबंधित माना गया है, जो कि एक तटस्थ स्तर के दोनों ओर की स्थिति को दर्शाता है। अतः पानी की काया की सतह (इकाई स्तर पर) या तो ऋण या धन आवेश या दोनों से युक्त होगी। जैन-विज्ञान में इसी को स्निग्ध या रूक्ष स्पर्श बताया गया है। 2. शीत/ऊष्ण यानि ठंडा और गर्म स्पर्श। इसका नाम तापक्रम की स्केल पर, अपने शरीर के तापक्रम की अपेक्षा से किया जाता है। 3. गुरू/ लघुः भारी/हल्का । आधुनिक विज्ञान के अनुसार यह गुण पदार्थ की सघनता या घनत्व का मापदण्ड/सूचक है। 4. मृदु-कठोरः मुलायम-कठोर । विज्ञान के अनुसार सूक्ष्म स्तर पर यह गुण कठोरता या लचीलेपन की स्केल पर अभिव्यक्त किया जा
सकता है। 5.2 स्पर्श-गुण व ज्ञान का विकासः
जैन-विज्ञान के अनुसार एक अचित्त परमाणु के केवल 2 स्पर्श गुण ही होते हैं। प्रथम 2 मूलभूत जोड़ों में से एक-एक स्पर्श । जब 2 या अधिक परमाणु आपस में मिलते हैं, तो वे पुद्गल-स्कंध बनाते हैं। पुद्गलों में दो प्रकार की परिणति (बदलाव) होती है
स्थूल और सूक्ष्म परिणति : जब परमाणुओं की संख्या या सघनता किसी समूह विशेष में या स्कंध में एक क्रांतिक अवसीमा (Lower Limit) पर पहुँच जाती है, जैसे जब 2 या ज्यादा परमाणु आपस में मिलकर स्कंध बनाते हैं, तो उनके सिकुड़ने के गुण के कारण उनमें एक सूक्ष्म परिणति हो सकती है। उस स्कंध का आकाश यानि आयतन घट जाता है। यानि स्कंध बहुत सूक्ष्मतर हो जाता है। इस कारण उस स्कंध का घनत्व कई गुणा बढ़ जाता है। इससे स्कंध में स्पर्श गुण 2 से बढ़ कर चारों मूलभूत स्पर्श हो सकते हैं। ये पुद्गल स्कंध अचाक्षुक (अदृश्य) ही रहते हैं। ये भारहीन (अगुरू-लघु) होते हैं तथा हमारी
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